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________________ ८२ विपाक सूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध अवसरियाहि - अवसारित-चालित अर्थात् हिलाई जाने वाली, उरुघंटाहिं - जंघा में अवस्थित घंटिकाओं से, छिप्पतुरेणं वज्जमाणेणं - शीघ्रता से बजने वाले बाजे के बजाने से, समुद्दरवभूयं पिव - समुद्र शब्द के समान महान् शब्द को प्राप्त हुए के समान, करेमाणीओ - करती हुई, ओलोएमाणीओ - अवलोकन करती हुई, आहिंडेमाणीओ - भ्रमण करती हुई, अविणिज्जमाणंसि - पूर्ण न होने पर। भावार्थ - तथा भोजन करके जो उचित स्थान पर आ गई हैं जिन्होंने पुरुष का वेश पहना हुआ है और जो दृढ बंधनों से बंधे हुए और लोहमय कसूलक आदि से युक्त कवच (लोहमय बखतर) को शरीर पर धारण किये हुए हैं यावत् आयुध और प्रहरणों से युक्त हैं तथा जो वामहस्त में धारण किये हुए फलक-ढालों से, कोश-म्यान से बाहर निकली हुई कृपाणों (तलवारों) से, कंधे पर रखे हुए शरधि-तरकशों से, सजीव (प्रत्यंचा) डोरी युक्त धनुषों से, सम्यक्त्या फेंके जाने वाले शरो-बाणों से, ऊंचे किये हुए पाशों-जालों से अथवा शस्त्र विशेषों से अवलम्बित तथा अवसारित (चालित) जंघा घंटियों के द्वारा तथा शीघ्र बजाया जाने वाला बाजा बजाने से, महान् उत्कृष्ट-आनंदमय महाध्वनि से समुद्र के रव-शब्द को प्राप्त हुए के . समान गगन मण्डल को ध्वनित (शब्दायमान) करती हुई शालाटवी नामक चोरपल्ली के चारों तरफ का अवलोकन और उसके चारों तरफ भ्रमण कर दोहद को पूर्ण करती है। क्या ही अच्छा हो, यदि मैं भी इसी प्रकार अपने दोहद को पूर्ण करूँ, ऐसा विचार करने के बाद दोहद के पूर्ण नहीं होने से वह उदास हुई यावत् आर्तध्यान करने लगी। विवेचन - निर्णय नामक अण्डवाणिज का जीव स्वकृत पापाचरण से तीसरी नरक में उत्पन्न हुआ। वहां की स्थिति को पूर्ण कर पुरिमताल नगर के ईशान कोण में स्थित शालाटवी नामक चोरपल्ली में विजय की स्त्री स्कंदश्री के गर्भ में पुत्र रूप से उत्पन्न होता है। जब अशुभ कर्म वाले जीव माता के गर्भ में आते हैं तो उस समय माता के संकल्प भी अशुभ होने लग जाते हैं। निर्णय के जीव को गर्भ में आये अभी तीन मास ही हुए थे कि गर्भस्थ जीव के प्रभाव से स्कंदश्री के मन में यह संकल्प (दोहद) उत्पन्न हुआ कि जो गर्भवती महिलाएं अपनी जीवन सहचारियों के साथ यथा रुचि सानंद खान पान करती है तथा पुरुष का वेष बना कर अनेकविध शस्त्रों से सैनिक तथा शिकारी की भांति तैयार होकर नाना प्रकार के शब्द करती हुई बाहर जंगलों में सानंद बिना किसी प्रतिबंध के भ्रमण करती हैं वे भाग्यशालिनी हैं और उन्होंने अपने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
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