SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 78
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६१ ************************************************************************************ वर्द्धमान अवधिज्ञान अन्य ज्ञेय - सर्व उत्कृष्ट अवधिज्ञान वाला काल की अपेक्षा अतीत अनागत असंख्य अवसर्पिणी और असंख्य उत्सर्पिणी काल को जानता है। .... द्रव्य की अपेक्षा अनन्त द्रव्य जानता है। प्रदेश की अपेक्षा अप्रदेशी परमाणु से लेकर अनन्त प्रदेशी सभी प्रकार के गुरुलघु तथा अगुरुलघु द्रव्य जानता है। वर्गणा की अपेक्षा औदारिक वर्गणा से लेकर कार्मण वर्गणा तक के सभी गुरुलघु और अगुरुलघु द्रव्यों को जानता है। पर्याय की अपेक्षा प्रति द्रव्य असंख्येय पर्याय जानता है। अनन्त द्रव्यों की प्रति द्रव्य असंख्य पर्याय की गणना से सब अनन्त पर्याय जानता है। ____फल - उत्कृष्ट अवधिज्ञान के स्वामी, गुणप्रतिपन्न अनगार को नियम से उसी भव में - अन्तर्मुहूर्त मात्र में, केवलज्ञान उत्पन्न हो जाता है। जैसे उषा काल के प्रकाश के पश्चात् सर्व प्रकाशक सूर्य का नियम से उदय हो जाता है। इति उत्कृष्ट अवधिक्षेत्र प्ररूपणा। ... अवधिज्ञान की वृद्धि होते होते कितने क्षेत्र का अवधिज्ञान होने पर, कितने भूत भविष्य काल का अवधिज्ञान होता है ? इसे अब सूत्रकार वर्द्धमान अवधिज्ञान के स्वरूप वर्णन के प्रसंग में बतलाते हैं। अंगुलमावलियाणं, भागमसंखिज्ज दोसु संखिज्जा। . अंगुलमावलियंतो, आवलिया अंगुलपुहुत्तं ॥ ५७॥ १. अंगुल के असंख्येय भाग को जानने वाला आवलिका के भी असंख्येय भाग को जानता है। २. अंगुल के संख्येय भाग को जानने वाला आवलिका के भी संख्येय भाग को जानता है। ३. एक प्रमाण अंगुल (भरतजी के अंगुल जितना क्षेत्र) जानने वाला, अन्तरावलिका-एक आवलिका अधूरी.जानता है। ४. अंगुल पृथक्त्व-अनेक अंगुल जानने वाला, एक आवलिका पूरी जानता है। . हत्थम्मि मुहत्तंतो, दिवसंतो गाउयम्मि बोद्धव्वो। - जोयण दिवसपुहुत्तं, पक्खंतो पण्णवीसाओ॥ ५८॥ ५. एक हाथ (२४ अंगुल) जानने वाला अन्तर्मुहूर्त (एक अपूर्ण मुहूर्त) जानता है। ६. एक कोस (८००० हाथ) जानने वाला अन्तर्दिवस (एक अपूर्ण दिन) जानता है। ७. एक योजन (चार कोस) जानने वाला दिवस पृथक्त्व-अनेक दिन जानता है। ८. पच्चीस योजन जानने वाला, अन्तः पक्ष (एक अपूर्ण पखवाड़ा) जानता है। भरहिम्म अड्डमासो, जम्बूद्दीवम्मि साहिओ मासो। वासं च मणुयलोए, वासपुहुत्तं च रुयगम्मि॥ ५९॥ ९. भरत क्षेत्र जानने वाला, आधामास जानता है। १०. जम्बूद्वीप (१ लाख योजनां) जानने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004198
Book TitleNandi Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy