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अवधिज्ञान का स्वामी
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अवधिज्ञान से किं तं ओहिणाणपच्चक्खं? ओहिणाणपच्चक्खं दुविहं पण्णत्तं, तं जहा - १. भवपच्चइयं च २. खाओवसमियं च॥६॥
प्रश्न - वह अवधिज्ञान प्रत्यक्ष क्या है ? उत्तर - अवधिज्ञान प्रत्यक्ष के दो भेद हैं। यथा-१. भवप्रत्ययिक और २. क्षायोपशमिक।
विवेचन - अवधि का अर्थ-'मर्यादा' है। अतएव जो मर्यादित अनिन्द्रिय प्रत्यक्षज्ञान है, वह 'अवधिज्ञान' है।
लोक में छह द्रव्य हैं-१. धर्म २. अधर्म ३. आकाश ४. जाव ५. पुद्गल और ६. काल। इसमें पुद्गल रूपी है और वर्ण, गंध, रस, स्पर्श से युक्त है। शेष पाँच द्रव्य अरूपी-वर्ण, गन्ध, रस • और स्पर्श से रहित हैं। अवधिज्ञान इन छहों द्रव्यों में मात्र रूपी पुद्गल द्रव्य को ही जानता है।
यह अवधिज्ञान की अवधि है-मर्यादा है। ___अथवा-अवधिज्ञान से अमुक परिमाण में काल जानने पर, अमुक परिमाण वाला क्षेत्र, अमुक परिमाण वाले द्रव्य और अमुक परिमाण वाली पर्यायें ही जानी जा सकती हैं। यह अवधिज्ञान की अवधि है। __अब सूत्रकार, शिष्य की जिज्ञासा की पूर्ति के लिए अवधिज्ञान के विषय में तीन बातें बतायेंगे। १. अवधिज्ञान किन्हें होता है २. अवधिज्ञान के कितने भेद हैं और ३. अवधिज्ञान से कितने द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव को जाना जाता है, इसे क्रमशः १. 'स्वामी द्वार' २. 'भेद द्वार' ३. 'विषय द्वार' कहते हैं। इसके पश्चात् सूत्रकार, अवधिज्ञान के सम्बन्ध में कुछ परिशेष उपयोगी बातें भी बतायेंगे। उसे ४: 'चूलिका द्वार' कहते हैं।
अवधिज्ञान के दो भेद हैं। यथा-१. भव-प्रत्यय-जन्म के सहकार से होने वाला अवधिज्ञान और २. क्षायोपशमिक-क्षयोपशम के कारण से होने वाला अवधिज्ञान। अब सूत्रकार कौन-सा अवधिज्ञान किसे होता है ? यह बताते हैं।
अवधिज्ञान का स्वामी से किं तं भवपच्चइयं? भवपच्चइयं दुण्हं, तं जहा-देवाण य णेरइयाण य॥७॥ . प्रश्न - वह भव-प्रत्यय अवधिज्ञान क्या है? उत्तर - भव-प्रत्यय अवधिज्ञान, देव और नारक, इन दो को होता है।
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