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________________ ४० नन्दी सूत्र ***************** ******************* ४. अथवा जैसे अघटित. रत्न में गुण छुपे रहते हैं और ज्यों ही उन्हें घर्षण और संस्कार मिलता है, उनके गुण प्रकट हो जाते हैं, उसी प्रकार जिस बालक में बुद्धि आदि छुपी पड़ी है, जिसे केवल थोड़े से शिक्षण और मार्गदर्शन की आवश्यकता है, वह मिलते ही जो जानकार बन . सकता हो, उसे समझाना सरल है। ५. अथवा प्रौढ़ होकर भी जिन्हें जिनधर्म श्रवण का योग नहीं मिलने से जिनकी बुद्धि अभी सत्य प्राप्त नहीं कर सकी है, उन्हें भी समझाना सरल है। ___ ऐसे सभी प्राणी 'अजान परिषद्' के अन्तर्गत हैं। जानकार परिषद् की अपेक्षा इन्हें समझाने में विलम्ब और प्रयत्न लगता है, पर ये समझ जाते हैं। अतः ये भी पात्र परिषद् हैं। ... ३. दुधियड्डा जहान य कत्थइ निम्माओ; न य पुच्छइ परिभवस्स दोसेणं। वत्थिव्व वायुपुण्णो, फुट्टइ गामिल्लय वियड्डो॥५४॥ तीसरी दुर्विदग्ध परिषद् के लक्षण इस प्रकार हैं - जो न स्वयं किसी विषय या शास्त्र में विद्वत्ता रखते हैं, न परिभव दोष से किसी से कुछ पूछते हैं (= हार या लघुता के भय से किसी विद्वान् से ज्ञान ग्रहण नहीं करते हैं) परन्तु; जैसे-वा से भरी मसक, केवल वायु से फूली हुई होती है, उसमें प्रवाही या घन कोई पदार्थ नहीं होत. उसी प्रकार जो किसी ठोस ज्ञान के बिना ही, वायु के समान कुछ दो चार पद, गाथाएँ, युक्तियाँ, उदाहरण आदि को सुनकर अपने आपको महापण्डित मानकर फूले फिरते हैं, ऐसे ग्रामीण दुर्विदग्धों (= लाल बुझक्कडों) के झुण्ड को 'दुर्विदग्ध परिषद्' समझना चाहिए। ऐसे लोगों को यदि समझाना प्रारंभ किया जाये, तो ये लोग उपदेशक के ही आगे आगे, शीघ्रातिशीघ्र विषयपूर्ति करने का प्रयास करते हैं और कहते हैं-'बस! बस! यह विषय तो हम स्वयं भली-भाँति जानते हैं। ऐसे लोगों को समझाना कठिन है। ये लोग अपात्र परिषद् हैं। शिष्य और परिषद् की पात्रता अपात्रता के वर्णन के बाद अब मूल नंदी सूत्र का आरम्भ किया जाता है। नंदी सूत्र में ५ ज्ञानों का विस्तृत वर्णन है। उसमें सूत्रकार प्रत्येक ज्ञान का वर्णन करने से पहले ज्ञान के भेद बतलाते हैं ज्ञान के भेद णाणं पंचविहं पण्णत्तं तं जहा-१. आभिणिबोहियणाणं २. सुयणाणं ३. ओहिणाणं ४. मणपज्जवणाणं ५. केवलणाणं॥१॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004198
Book TitleNandi Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size7 MB
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