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प्रकाशकीय निवेदन
नन्दी सूत्र में मात्र ज्ञान का ही प्रतिपादन हुआ है। अन्य सूत्रों में तो एक से अधिक विषय भी संग्रहित हुए हैं। कुछ में चरित्र वर्णन है, तो कुछ में आचार विधान है, किन्तु एक ही विषय और वह भी मोक्ष के प्रथम अंग, ऐसे ज्ञान का प्रतिपादक तो यह नन्दी सूत्र ही है।
नन्दी सूत्र का नाम ही आनन्दकारी है। इसका स्वाध्याय कई संत-सती नित्य करते रहते हैं। बहुतों को तो यह कंठाग्र है। उपासक वर्ग में भी इसके मूल पाठ का स्वाध्याय होता है। यदि मूल के साथ इसका भाव भी हृदयंगम रहे तो अत्यधिक लाभ का कारण है। अतएव यह नूतन संस्करण प्रकाशित किया जा रहा है। इससे स्वाध्यायी वर्ग अवश्य लाभान्वित होगा।
- इसमें औत्पत्तिकी आदि चार बुद्धि की जो कथाएं दी हैं, वे पं. श्री घेवरचंद्रजी बांठिया (स्व० मुनि श्री वीरपुत्रजी म. सा.) की लिखी हुई हमारे पास रखी थीं, वे दी गई हैं और परिशिष्ट में अनुज्ञानन्दी और लघुनन्दी भी देकर एक उपयोगी साहित्य से समाज को अवगत कराया गया है। अनुज्ञानन्दी में केवल 'अनुज्ञा' शब्द पर ही - १. नाम, २. स्थापना, ३. द्रव्य, ४. क्षेत्र, ५.. काल और. ६. भव के मूल भेद तथा उत्तर भेद से तथा नयदृष्टि से विवेचन किया गया है। इसका विषय अनुयोगद्वार सूत्र के 'आवश्यक' पद पर हुए विवेचन के समान है और प्रोननीय है। लघुनन्दी में केवल श्रुतज्ञान का ही विषय है, क्योंकि पठन, पाठन, अभ्यासादि श्रुतज्ञान का ही होता है, शेष चार ज्ञान का नहीं होता। क्रियात्मक व्यवहार, श्रुतज्ञान का ही होता है। इसका नाम'योग क्रिया रूप बृहद् नन्दी' भी है। लघुनन्दी का विषय सरल है और नन्दी सूत्र के श्रुत भेद में आया हुआ है। इसलिए इसका अर्थ नहीं देकर मात्र मूल पाठ ही दिया है। आशा है कि इससे पाठकों को विशेष लाभ होगा।
नन्दी सूत्र की प्रथमावृत्ति का अनुवाद स्व. आत्मार्थी श्री केवलमुनि जी म. सा. के सुशिष्य, तथा तपस्वी मुनिराज श्री लालचंदजी म. सा. के अंतेवासी पं. मुनि श्री पारसकुमारजी म. ने किया था और दूसरी आवृत्ति का विशद विवेचन भी आप ही ने लिखने की कृपा की है। मुनिश्री की ज्ञान साधना की लगन विशेष है। बुद्धि भी पैनी है। आपने बहुश्रुत श्रमणश्रेष्ठ पं. मुनिराज पूज्य श्री समर्थमलजी म. सा. की सेवा में रहकर ज्ञान चेतना को पुष्ट एवं समृद्ध करने का भरसक प्रयत्न
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