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१६
नन्दी सूत्र
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सूत्र का अर्थ चल रहा है। जिनका यश बहुत नगरों में फैला हुआ है। ऐसे उन आर्य स्कंदिल को वन्दना करता हूँ।
तत्तो हिमवंत-महंत, विक्कमे धिइ-परक्कम-मणंते। सज्झाय-मणंतधरे, हिमवंते वंदिमो सिरसा॥ ३८॥
इनके पश्चात् (२२) श्री हिमवन्त हुए। ये हिमवान् पर्वत की भाँति महान् विक्रम वाले थे (जिस प्रकार हिमवान् पर्वत बहुत लम्बा-चौड़ा है, उसी प्रकार इनका विहार-क्षेत्र बहुत लम्बाचौड़ा था। ये अनन्त-अपरिमित, धैर्य-प्रधान पराक्रम वाले थे। ये अनन्त स्वाध्याय के धारक थेअनन्तगम और अनन्त पर्यायों वाले सूत्रों के धारक थे। ऐसे हिमवन्त को शिरसा वन्दन करता हूँ।
आचार्यजी इनकी कुछ और भी स्तुति करते हैं। कालिय-सुय-अणुओगस्स, धारए धारए य पुव्वाणं। . हिमवंत खमासमणे, वंदे णागज्जुणायरिए॥३९॥
हिमवंत क्षमाश्रमण, कालिक श्रुत की व्याख्या को जानने वाले थे और उत्पादपूर्व आदि अनेक पूर्वो के ज्ञाता थे। ऐसे हिमवन्त को वन्दना करता हूँ। उसके पश्चात् (२३) श्री नागार्जुन आचार्य को वन्दना करता हूँ। श्री नागार्जुन की गुणस्तुति करते हुए कहा किमिउ-मद्दव-संपन्ने, आणुपुव्विं वायगत्तणं पत्ते।
ओह-सुय-समायारे, नागाज्जुणवायए वंदे॥ ४०॥
वे मृदु-मार्दव सम्पन्न थे (समस्त भव्यजनों का मन संतोषित हो-ऐसी कोमलता वाले थे) आनुपूर्वी से उन्हें वाचकपद प्राप्त हुआ था-(योग्य वय और योग्य चारित्र पर्याय आने पर उन्हें वाचक पद दिया गया था), वे ओघश्रुत का समाचरण करने वाले थे (उत्सर्ग मार्ग पर चलने वाले थे) ऐसे श्री नागार्जुन वाचक को मैं वन्दना करता हूँ।
(गोविंदाणं पि नमो, अणुओगे विउलधारिणिंदाणं। णिच्चं खंतिदयाणं, परूवणे दुल्लभिंदाणं)॥४१॥
मैं गोविन्द आचार्य को भी नमस्कार करता हूँ। ये विपुल अनुयोग को धारण करने वालों में इन्द्र (तुल्य प्रधान) थे। इसी प्रकार नित्य क्षमा दया आदि की प्ररूपणा करने वालों में भी दुर्लभइन्द्र तुल्य थे।
तत्तो य भूयदिन्नं, निच्चं तवसंजमे अनिव्विवण्णं। पंडियजण-सामण्णं, वंदामो संजम-विहिण्णू॥४२॥
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