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अनुज्ञा नंदी
उत्तर - स्थापना अनुज्ञा के दो भेद हैं १. सद्भाव स्थापना और २. असद्भाव स्थापना । अनुज्ञा शब्द की यथावत् आकृति या अनुज्ञा नंदी पुस्तक की यथावत् आकृति या अनुज्ञा नंदी की यथावत् प्रतिलिपि या अनुज्ञा देते-लेते हुए जीवों की यथावत् आकृति, - 'सद्भाव अनुज्ञा स्थापना' है और अनुज्ञा शब्द की अयथावत् आकृति या अनुज्ञा नंदी की पुस्तक की अयथावत् आकृति या अनुज्ञा नंदी की अयथावत् प्रतिलिपि या अनुज्ञा देते लेते हुए जीवों की अयथावत् आकृति 'असद्भाव स्थापना' है।
उदाहरण - जैसे १. काष्ठ में, २. पुस्तक में, ३. लेप में, ४. चित्र में, अनुज्ञा की यथावत् आकृति बनाते हैं वह अनुज्ञा की 'सद्भाव स्थापना' है और अयथावत् आकृति बनाते हैं, वह 'असद्भाव स्थापना' है। इसी प्रकार ५. फूल आदि को गूंथ कर, ६. वस्त्र आदि को वेष्टित कर, ७. पीतल आदि को गला-ढला कर या वस्त्र - खण्ड आदि को जोड़ कर, अनुज्ञा की यथावत् आकृति बनाते हैं, वह अनुज्ञा की सद्भाव स्थापना है और अयथावत् आकृति बनाते हैं, वह अनुज्ञा की असद्भाव स्थापना है एवं शंख, कौड़ी आदि में अनुज्ञा की एक की या अनेक की स्थापना करते हैं अर्थात् 'यह अनुज्ञा' है, इस प्रकार ठाते हैं, वह अनुज्ञा की असद्भाव स्थापना है। यह स्थापना अनुज्ञा है ।
णाम gaणाणं को पइ-विसेसो ? णाम आवकहियं, ठवणा इत्तरिया वा होज्जा, आवकहिया वा ।
शंका- शंख, कौड़ी आदि जिनमें अनुज्ञा की आकृति भी नहीं है, उनमें 'अनुज्ञा'- यह नाम रखते हैं और अनुज्ञा की 'स्थापना' करते हैं, इन दोनों में क्या अन्तर हुआ ?
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समाधान - अन्तर यह है कि यदि नाम रखा जाता है, तो वह प्रायः यावत्कथित होता है अर्थात् जिस वस्तु पर 'अनुज्ञा' यह नाम रखा जाता है, वह वस्तु जब तक रहती है, तब तक उसका नाम 'अनुज्ञा' रहता है । परन्तु अनुज्ञा की स्थापना इत्वरिक - अल्पकालिक भी हो सकती है अर्थात् जिस वस्तु पर अनुज्ञा की स्थापना की जाती है, वह वस्तु अधिक काल तक विद्यमान रहे और उस पर की गई अनुज्ञा की स्थापना कुछ समय में ही समाप्त कर दी जाय, यह संभव है और अनुज्ञा की स्थापना यावत्कथिक भी हो सकती है अर्थात् जिस वस्तु पर अनुज्ञा की स्थापना की जाती है, वह जब तक रहे, तब तक उसे अनुज्ञा की स्थापना के रूप में माना जाय, यह भी संभव है ।
इस प्रकार नाम अनुज्ञा प्रायः यावत्कथिक ही होने से और स्थापना अनुज्ञा इत्वरिक और यावत्कथिक दोनों प्रकार की सम्भव होने से, नाम अनुज्ञा और स्थापना अनुज्ञा में अंतर है। नाम में मात्र नाम रखा जाता है, उसमें स्थापना की बुद्धि नहीं होती, परन्तु स्थापना में स्थापना की बुद्धि होती है, यह अंतर है ।
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