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श्रुत ज्ञान के भेद-प्रभेद - सूत्रकृतांग
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इनमें कोई १. देव - ईश्वर के विनय को श्रेष्ठ मानते हैं, कोई २. राजा को ईश्वर का साक्षात् अंश मानकर उसका विनय श्रेष्ठ बताते हैं, कोई ३. यति भक्त का भगवान् के लिए भी सेव्य मानकर उसके विनय को श्रेष्ठ बताते हैं, कोई ४. ज्ञाति - वर्ण धर्म को मुक्तिमूल मानकर उसका विनय करना श्रेष्ठ मानते हैं, कोई ५. वृद्ध की, तो कोई ६. अधम-चाण्डाल कुत्ते आदि की, कोई ७. माता की और कोई ८. पिता की सेवा-विनय को श्रेष्ठ बताते हैं, इसमें भी कोई १. मन से, कोई २. वचन से, कोई ३. काया से और कोई ४. दान से, विनय को श्रेष्ठ बताते हैं। यों इनके ८४४-३२ भेद हैं।
सूयगडे णं परित्ता वायणा, संखिजा अणुओगदारा, संखेज्जा वेढा संखेजा सिलोगा, संखिजाओ णिज्जुत्तीओ, (संखिजाओ संगहणीओ) संखिजाओ पडिवत्तीओ।
__ अर्थ - सूत्रकृतांग में परित्त वाचनाएं, संख्येय अनुयोग द्वार, संख्येय वेष्ट, संख्येय श्लोक, संख्येय नियुक्तियाँ, संख्येय संग्रहणियाँ और संख्येय ७ प्रतिपत्तियाँ हैं।
से णं अंगट्ठयाए बिइए अंगे, दो सुयक्खंधा, तेवीसं अज्झयणा, तित्तीसं उद्देसणकाला, तित्तीसं समुद्देसणकाला।
अर्थ - सूत्रकृतांग, अंगों में द्वितीय अंग है। इसके दो श्रुतस्कन्ध और तेईस अध्ययन हैं। उद्देशन समुद्देशन काल (उद्देशकानुसार) ३३, ३३ हैं।
विवेचन - सूत्रकृतांग, अंगों में दूसरा अंग है। इसके दो श्रुतस्कन्ध हैं। (पहले श्रुतस्कन्ध का नाम 'गाथा षोडषक' है।) . इसके तेईस अध्ययन हैं। पहले श्रुतस्कन्ध में सोलह अध्ययन हैं - १. समय २. वैतालीय ३. उपसर्ग (+परिज्ञा). ४. स्त्री परिज्ञा ५. नरक विभक्ति ६. श्री महावीर स्तुति ७. कुशील परिभाषा ८. वीर्य ९. धर्म १०. समाधि ११. मार्ग १२. समवसरण १३. यथातथ्य १४. ग्रंथ १५. यमकीय (आदानीय) और १६. गाथा। दूसरे श्रुतस्कन्ध में सात अध्ययन हैं - १. पुण्डरीक (+कमल का) २. (तेरह +) क्रिया स्थान ३. आहारपरिज्ञा ४. अप्रत्याख्यान क्रिया ५. आचारश्रुत (अनगारश्रुत) ६. आर्द्रकीय (=आर्द्रकुमार का) ७. नालन्दीय (उदकपेढ़ाल पुत्र का)। ये सब १६+७=२३।
तेतीस उद्देशक हैं। वे इस प्रकार हैं - समय के ४, वेतालीय के ३, उपसर्ग परिज्ञा के ४, स्त्री परिज्ञा के २, नरक विभक्ति के २, शेष अट्ठारह अध्ययनों के एक-एक परिणाम से १८, सब तेतीस। उद्देशक के अनुसार तेतीस उद्देशनकाल और तेतीस समुद्देशनकाल हैं। .. छत्तीसं पयसहस्साइं पयग्गेणं। संखिज्जा अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पजवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा।
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