SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 241
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२४ ****** नन्दी सूत्र ११ - १२. गमिक श्रुत- अगमिक श्रुत से किं तं गमियं ? गमियं दिट्टिवाओ । प्रश्न- वह गमिक श्रुत क्या है ? उत्तर - दृष्टिवाद गमिक है । विवेचन - जिस श्रुत के आदि मध्य या अन्त में कुछ विशेषता लिए हुए पहले के समान वैसे के वैसे गमक (सूत्रपाठ ) बार-बार आते हैं, उस श्रुत को 'गमिक' कहते हैं । दृष्टिवाद गमिक हैं, क्योंकि उसका बहुभाग प्रायः सदृश गमक ( सरीखे सूत्रपाठ ) वाला है । (अंगबाह्य आगमों में उत्तराध्ययन का तीसवाँ अध्ययन आदि का बहुभाग प्रायः सदृश गमक वाला है ।) प्रश्न- वह अगमिक श्रुत क्या है ? *********** उत्तर- कालिक श्रुत अगमिक है। यह गमिक और अगमिक श्रुत का प्ररूपण हुआ । विवेचन - जिस श्रुत में बहुत भिन्नता लिए नये असदृश गमक (सूत्रपाठ ) आते हैं, उस श्रुत को 'अगमिक' कहते हैं। कालिक सूत्र अगमिक है, क्योंकि आचारांग आदि सूत्रों का बहुभाग असदृश गमक वाला है। Jain Education International अब तक सूत्रकार ने श्रुत के छह प्रकार से दो-दो भेद करके श्रुत के बारह भेद बताये । अब सातवें प्रकार से श्रुत के दो भेद करके श्रुत के तेरहवें और चौदहवें भेद का स्वरूप बतलाते हैं। १३-१४. अंग प्रविष्ट और अंग बाह्य अहवा तं समासओ दुविहं पण्णत्तं तं जहा - अंगपविट्टं अंगबाहिरं च । अर्थ - अथवा श्रुतज्ञान के संक्षेप से दो भेद हैं। यथा- १. अंग प्रविष्ट और २. अंग बाह्य । अल्प वक्तव्यता के कारण पहले अंग बाह्य का वर्णन करते हैं अंगबाह्य के दो भेद से किं तं अंगबाहिरं ? अंगबाहिरं दुविहं पण्णत्तं तं जहा - आवस्सयं च, आवस्सय वइरित्तं च । प्रश्न - वह अंगबाह्य श्रुत क्या है ? १. आवश्यक तथा २. आवश्यक व्यतिरिक्त । उत्तर - अंगबाह्य के दो भेद हैं। यथा - विवेचन - जो बारह अंग वाले श्रुत-पुरुष से बाहर श्रुत है, वह 'अंगबाह्य' श्रुत है अथवा जिस For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004198
Book TitleNandi Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy