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नन्दी सूत्र
११ - १२. गमिक श्रुत- अगमिक श्रुत
से किं तं गमियं ? गमियं दिट्टिवाओ ।
प्रश्न- वह गमिक श्रुत क्या है ?
उत्तर - दृष्टिवाद गमिक है ।
विवेचन - जिस श्रुत के आदि मध्य या अन्त में कुछ विशेषता लिए हुए पहले के समान वैसे के वैसे गमक (सूत्रपाठ ) बार-बार आते हैं, उस श्रुत को 'गमिक' कहते हैं ।
दृष्टिवाद गमिक हैं, क्योंकि उसका बहुभाग प्रायः सदृश गमक ( सरीखे सूत्रपाठ ) वाला है । (अंगबाह्य आगमों में उत्तराध्ययन का तीसवाँ अध्ययन आदि का बहुभाग प्रायः सदृश गमक वाला है ।) प्रश्न- वह अगमिक श्रुत क्या है ?
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उत्तर- कालिक श्रुत अगमिक है। यह गमिक और अगमिक श्रुत का प्ररूपण हुआ ।
विवेचन - जिस श्रुत में बहुत भिन्नता लिए नये असदृश गमक (सूत्रपाठ ) आते हैं, उस श्रुत को 'अगमिक' कहते हैं। कालिक सूत्र अगमिक है, क्योंकि आचारांग आदि सूत्रों का बहुभाग असदृश गमक वाला है।
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अब तक सूत्रकार ने श्रुत के छह प्रकार से दो-दो भेद करके श्रुत के बारह भेद बताये । अब सातवें प्रकार से श्रुत के दो भेद करके श्रुत के तेरहवें और चौदहवें भेद का स्वरूप बतलाते हैं।
१३-१४. अंग प्रविष्ट और अंग बाह्य
अहवा तं समासओ दुविहं पण्णत्तं तं जहा - अंगपविट्टं अंगबाहिरं च ।
अर्थ - अथवा श्रुतज्ञान के संक्षेप से दो भेद हैं। यथा- १. अंग प्रविष्ट और २. अंग बाह्य । अल्प वक्तव्यता के कारण पहले अंग बाह्य का वर्णन करते हैं
अंगबाह्य के दो भेद
से किं तं अंगबाहिरं ? अंगबाहिरं दुविहं पण्णत्तं तं जहा - आवस्सयं च, आवस्सय वइरित्तं च ।
प्रश्न - वह अंगबाह्य श्रुत क्या है ?
१. आवश्यक तथा २. आवश्यक व्यतिरिक्त ।
उत्तर - अंगबाह्य के दो भेद हैं। यथा - विवेचन - जो बारह अंग वाले श्रुत-पुरुष से बाहर श्रुत है, वह 'अंगबाह्य' श्रुत है अथवा जिस
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