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________________ २१२ ************* नन्दी सूत्र ***************** ** * **** ** प्रश्न - वह हेतु संज्ञा क्या है ? (उसकी अपेक्षा संज्ञी जीव और असंज्ञी जीव कौन-कौन हैं और संज्ञीश्रुत असंज्ञीश्रुत क्या-क्या हैं ?) उत्तर - जिनमें अभिसंधारण-बुद्धिपूर्वक कार्य करने की क्षमता हो, वे हेतु की अपेक्षा संज्ञी तथा जिनमें....क्षमता नहीं हो, वे असंज्ञी हैं। विवेचन - जो प्रायः वर्तमान के हेतु का विचार है अर्थात् निकट भूत एवं निकट भविष्य के हेतु का विचार हैं, उसे 'हेतु संज्ञा' कहते हैं। २. संज्ञी असंज्ञी जीव - जिन जीवों में इस संज्ञा पूर्वक इष्ट में प्रवृत्ति और अनिष्ट से निवृत्ति रूप क्रिया करने की शक्ति पायी जाती है, वे इस हेतु संज्ञा की अपेक्षा "संज्ञी जीव' हैं तथा जिनमें नहीं पायी जाती, वे 'असंज्ञी जीव' हैं। यह संज्ञा जो दीर्घकालिक संज्ञा की अपेक्षा असंज्ञी हैं-मन रहित हैं, उनमें से भी जो दो इंद्रिय वाले, तीन इंद्रिय वाले, चार इंद्रिय वाले और सम्मूर्छिम पाँच इंद्रिय वाले त्रस जीव हैं, उन्हीं में पायी जाती है, क्योंकि वे स्पर्शन इंद्रिय द्वारा शीत-उष्ण आदि का अनुभव कर उसे दूर करने के विचारपूर्वक धूप-छाँव आदि में गमन आगमन करते हैं। रहने के लिए स्थान, घर आदि बनाते हैं। भूख लगने पर उसे मिटाने की विचारणापूर्वक इष्ट आहार पाकर उसे खाने की प्रवृत्ति करते हैं, अनिष्ट आहार देख कर उससे निवृत्त होते हैं, जैसे-लट आदि। सुगंध की इच्छापूर्वक शक्कर आदि इष्ट गंध वाले पदार्थों के निकट पहुँचते हैं, अनिष्ट गंध वाले पदार्थों से हटते हैं, जैसे-चींटियाँ आदि। रूप की इच्छापूर्वक रूपवान, गंधवान, रसवान पुष्प आदि पर पहुंचते हैं, अनिष्ट रूप, गंध, रसवान पुष्प आदि पर नहीं पहुंचते हैं, जैसे भ्रमर आदि। जो एक इन्द्रिय वाले स्थावर जीव हैं, उनमें यह संज्ञा नहीं पायी जाती, क्योंकि उनमें वर्तमान का विचार बोध भी अत्यन्त मन्द होता है और तत्पूर्वक गमन आगमन की वीर्य शक्ति भी नहीं होती। ३. संज्ञी असंज्ञी श्रुत - जिन जीवों में यह हेतु संज्ञा पायी जाती है, उन जीवों का श्रुत, हेतु संज्ञा की अपेक्षा 'संज्ञी श्रुत' है तथा जिन जीवों में यह संज्ञा नहीं पायी जाती, उन जीवों का श्रुत, हेतु संज्ञा की अपेक्षा 'असंज्ञी श्रुत' है। से किं तं दिट्ठिवाओवएसेणं? दिद्विवाओवएसेणं सण्णिसुयस्स खओवसमेणं सण्णी लब्भइ, असण्णिसुयस्स खओवसमेणं असण्णी लब्भइ। से त्तं दिट्ठिवाओवएसेणं। सेत्तं सण्णिसुयं। सेत्तं असण्णिसुयं॥३९॥ प्रश्न - वह दृष्टिवाद संज्ञा क्या है ? (उसकी अपेक्षा संज्ञी जीव और असंज्ञी जीव कौन कौन हैं और संज्ञी श्रुत तथा असंज्ञी श्रुत क्या-क्या है ?) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004198
Book TitleNandi Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size7 MB
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