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२०२
नन्दी सूत्र
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उत्तर - नहीं, वे भेद वास्तव में अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा-इन चार भेदों से पृथक् नहीं है, क्योंकि औत्पातिकी, वैनेयिकी, कार्मिकी और पारिणामिकी इन बुद्धियों में भी पदार्थ का (विषय का) ग्रहण, विचारणा, निर्णय और धारणा होती ही है। अतएव उक्त चारों बुद्धियाँ भी अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणात्मक होने से अवग्रहादि से अभिन्न हैं।
प्रश्न - चार मति और चार बुद्धि यों ८ भेद क्यों किये?
उत्तर - 'सामान्य रूप में मति ज्ञान, श्रुत का अनुसरण करने वाला है। किन्तु ये चार बुद्धियाँ ग्रंथ आदि रूप श्रुत का अनुसरण करने वाली नहीं है।' इस विशेष बात का ज्ञान कराने के लिए ही . सूत्रकार ने पहले मतिज्ञान के श्रुतनिश्रित और अश्रुतनिश्रित-ये दो भेद किये और चारों बुद्धियों को अश्रुतनिश्रित में-श्रुतनिश्रित अवग्रहादि से भिन्न करके बतलाया।
अब सूत्रकार अवग्रह आदि चारों भेदों का अर्थ बतलाते हैं। .. . अत्थाणं उग्गहणम्मि, उग्गहो तह वियालणे ईहा। ववसायम्मि अवाओ, धरणं पुण धारणं बिंति॥ ८३॥
अर्थ - १. 'अवग्रह'-पदार्थ के ग्रहण को 'अवग्रह' कहते हैं। २. 'ईहा'-पदार्थ की विचारणा . को 'ईहा' कहते हैं। ३. 'अवाय'-पदार्थ के व्यवसाय को 'अवाय' कहते हैं और ४. 'धारणा'पदार्थ के निर्णय ज्ञान के धारण करने को 'धारणा' कहते हैं।
अब सूत्रकार इन चारों का काल, गाथा-बद्ध बतलाते हैंउग्गहं इक्कं समयं, ईहावाया मुहुत्तमद्धं तु। कालमसंखं संखं, च धारणा होई णायव्वा॥ ८४॥
अर्थ - १. अवग्रह का काल एक समय है। २. ईहा का काल अन्तर्मुहूर्त है। ३. अवाय का काल अन्तर्मुहूर्त है और ४. (वासना रूप) धारणा का काल संख्यात काल या असंख्यात काल है।
अब सूत्रकार 'कौन इंद्रिय, किस प्रकार विषय को ग्रहण करके जानती है'-यह बतलाते हैं। पुटुं सुणेइ सई, रूवं पुण पासइ अपुढे तु। गंधं रसं च फासं च, बद्धपढे वियागरे॥ ८५॥
अर्थ - श्रोत्रेन्द्रिय, शब्द को मात्र स्पर्श होने पर भी सुनती है, किन्तु चक्षुइंद्रिय तो रूप को बिना स्पर्श हुए ही देखती है तथा घ्राण इंद्रिय गन्ध को, रसना इंद्रिय रस को और स्पर्शन इंद्रिय स्पर्श को, स्पर्श होने पर और बँधने पर दो में से ही जानती है।
विवेचन - जैसे नये शकोरे पर जल-बिन्दु का स्पर्श मात्र होने से, शकोरा उस जल बिंदु को ग्रहण कर लेता है। वैसे ही श्रोत्र (कान) इंद्रिय के साथ शब्द पुद्गलों का मात्र स्पर्श रूप सम्बन्ध
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