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मति ज्ञान - अवग्रह आदि का क्रम
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भावार्थ - कल्पना करो कि-किसी नाम वाला कोई पुरुष है। उसकी स्पर्शन-उपकरण-द्रव्यइन्द्रिय में कोई स्पर्श पुद्गल प्रवेश करता है। तब वह पहले व्यंजन अवग्रह पूरा होने पर, एक समय की स्थिति वाला, नैश्चयिक अर्थ अवग्रह से, अव्यक्त रूप से उस स्पर्श को छूता है। फिर असंख्य समय की स्थिति वाला व्यावहारिक अर्थ अवग्रह होने पर-'यह स्पर्श है'-इस प्रकार स्पर्श को जानता है। परन्तु उस समय वह यह नहीं जानता कि-'यह कैसा स्पर्श है?' उसके पश्चात् वह ईहा में प्रवेश करता है। उसके अनन्तर वह जानता है कि-'यह अमुक स्पर्श है।' यह स्पर्श का अवाय ज्ञान है। इस ज्ञान के रूप में वह अवाय में प्रवेश करता है। इस अवाय के अनन्तर वह स्पर्श का निर्णय ज्ञान उसे अविच्युति रूप धारणा से आत्मगत हो जाता है। उसके पश्चात् वह वासना रूप धारणा में प्रवेश करता है। उससे वह उस स्पर्श के संस्कार ज्ञान को संख्य या असंख्यात काल तक आत्मा में धारण किये रहता है। ___अब सूत्रकार 'अनिन्द्रिय (मन) विषयक अवग्रह आदि भी इसी क्रम से होते हैं'-यह बताते हैं। ..
से जहाणामए केइ पुरिसे अव्वत्तं सुमिणं पासिज्जा तेणं सुमिणेत्ति उग्गहिए, णो चेव णं जाणइ के वेस सुमिणेत्ति, तओ ईहं पविसइ, तओ जाणइ अमुगे एस सुमिणे, तओ अवायं पविसइ, तओ से उवगयं हवइ, तओ धारणं पविसइ, तओ णं धारेइ संखेज्जं वा कालं, असंखेज्जं वा कालं, से त्तं मल्लगदिटुंतेणं॥ ३५॥
भावार्थ - कल्पना करो कि-किसी नाम वाला कोई पुरुष है। वह आधी नींद में सोया हुआ है। उस समय उसे कोई स्वप्न आता है। तब वह पहले एक समय की स्थिति वाले नैश्चयिक अर्थ अवग्रह से उस स्वप्न को अव्यक्त रूप में देखता है। फिर असंख्य समय की स्थिति वाले प्रथम अर्थ अवग्रह से-'यह स्वप्न है'-इस प्रकार स्वप्न को जानता है। परन्तु उस समय वह यह नहीं जानता कि-'यह कौन-सा स्वप्न है ?' उसके पश्चात् वह ईहा में प्रवेश करता है। इसके अनन्तर वह जानता है कि यह अमुक स्वप्न है। यह स्वप्न का अवाय ज्ञान है। इस ज्ञान के रूप में वह अवाय में प्रवेश करता है। उस अवाय के अनन्तर वह स्वप्न का निर्णय ज्ञान, उसे अविच्युति रूप धारणा से आत्मगत हो जाता है। उसके पश्चात् वह वासना रूप धारणा में प्रवेश करता है। उससे वह उस स्वप्न के संस्कार ज्ञान को संख्यात काल तक या असंख्यात काल तक आत्मा में धारण किये रहता है। यह वह 'मल्लक दृष्टांत' है।
अब सूत्रकार आभिनिबोधिक ज्ञान, जघन्य और उत्कृष्ट से कितने द्रव्य, कितना क्षेत्र, कितना काल और कितने भाव जानता है-यह बतलाने वाला तीसरा विषय द्वार कहते हैं
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