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५. विमर्श - अवग्रह से जाने हुए पदार्थ में पाये जाने वाले धर्मों का स्पष्ट विचार करना'विमर्श' है। जैसे-ठूंठ के कुछ निकट जाकर, उसे देखकर यह विचार करना कि इसमें स्पष्टतः ठूंठ में पाये जाने वाले धर्म दिखाई देते हैं-विमर्श है । यह ईहा है।
अवाय के भेद
नन्दी सूत्र
से किं तं अवाए ? अवाएं छव्विहे पण्णत्ते, तं जहा- सोइंदियअवाए, चक्खिंदियअवाए, घाणिंदियअवाए, जिब्भिंदियअवाए, फासिंदियअवाए, णोइंदियअवाए ।
प्रश्न वह अवाय क्या है ?
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उत्तर - अवाय के छह भेद हैं । १. श्रोत्रेन्द्रिय अवाय, २. चक्षुरिन्द्रिय अवाय ३. घ्राणेन्द्रिय अवा ४. जिह्वेन्द्रिय अवाय, ५. स्पर्शनेन्द्रिय अवाय तथा ६. अनिन्द्रिय अवाय ।
विवेचन - ईहा के द्वारा यथार्थ सम्यग् विचार किये गये पदार्थ का सम्यग् निर्णय करनाअवाय है।
१. श्रोत्रइंद्रिय अवाय भाव श्रोत्रइंद्रिय के द्वारा शब्द का निर्णय करना । जैसे- शंख का शब्द सुनाई देने पर -'यह शंख का ही शब्द है, धनुष्य का नहीं' - ऐसा निर्णय करना ।
२. चक्षुइंद्रिय अवाय - भाव चक्षुइंद्रिय के द्वारा रूप का निर्णय करना, जैसे-ठूंठ दिखाई देने पर - ' यह ठूंठ ही है, पुरुष नहीं' - ऐसा निर्णय करना ।
३. घ्राणइंद्रिय अवाय गंध आने पर 'यह कस्तूरी की ४. जिह्वाइंद्रिय अवाय
भाव प्राणइंद्रिय के द्वारा गंध का निर्णय करना, जैसे- कस्तूरी की ही गंध है, केशर की नहीं' - ऐसा निर्णय करना ।
भाव जिह्वाइंद्रिय के द्वारा रस का निर्णय करना, जैसे- ईख का रस चखने पर - ' यह ईख का ही रस है, गुड़ का पानी नहीं' ऐसा निर्णय करना ।
५. स्पर्शनइंद्रिय अवाय स्पर्श होने पर -'यह रस्सी का ही
भाव स्पर्शनइंद्रिय के द्वारा स्पर्श का निर्णय करना, जैसे- रस्सी का स्पर्श है, सर्प का नहीं'-ऐसा निर्णय होना।
६. अनिन्द्रिय अवाय भाव मन के द्वारा रूपी अरूपी पदार्थ का निर्णय करना, जैसे उदय होते हुए सूर्य का स्वप्न देखकर - ' यह उदय होते हुए सूर्य का ही स्वप्न है, अस्त होते हुए सूर्य का नहीं' - ऐसा निर्णय होना ।
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तस्स णं इमे एगट्टिया णाणांघोसा णाणावंजणा पंच णामधिज्जा भवंति, तं जहा-आउट्टणया, पच्चाउट्टणया, अवाए, बुद्धि, विण्णाणे, से त्तं अवाए ॥ ३२ ॥ अवाय के ये एकार्थक पाँच नाम हैं। जो विषम मात्रा और विषम अक्षर वाले हैं। वे इस प्रकार हैं - १. आवर्तनता, २. प्रत्यावर्तनता, ३. अवाय, ४. बुद्धि और ५. विज्ञान। यह अवाय है ।
अर्थ
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