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मति ज्ञान - वज्रस्वामी
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उपरोक्त वचन सुनते ही बालक, मुनियों की ओर गया और रजोहरण उठा लिया। राजा ने वह बालक साधुओं को सौंप दिया। राजा और संघ की अनुमति से आचार्य ने उसी समय उसे लघु दीक्षा दे दी। बड़ी दीक्षा बाद में दी।
यह घटना देख कर सुनन्दा ने सोचा - "मेरे भाई ने, पति ने और पुत्र ने - सभी ने दीक्षा ले ली। अब मुझे संसार से क्या प्रयोजन है?" यह सोच कर उसे वैराग्य उत्पन्न हो गया और उसने भी दीक्षा ले ली।
कुछ साधुओं के साथ बालमुनि को वहीं छोड़ कर आचार्य दूसरी ओर विचरने लगे। कुछ समय के पश्चात् वज्र मुनि भी आचार्य के पास आये और उसके साथ विहार करने लगे। दूसरे मुनियों को अध्ययन करते हुए सुन कर वज्र मुनि को ग्यारह अंगों का ज्ञान स्थिर हो गया। इसी प्रकार सुन कर ही उन्होंने पूर्वो का बहुत-सा ज्ञान भी प्राप्त कर लिया।
एक समय आचार्य शौच निवृत्ति के लिए बाहर गये थे और दूसरे साधु गोचरी के लिए गये थे। पीछे वज्र मुनि उपाश्रय में अकेले थे। उन्होंने साधुओं के उपकरणों को (पातरे, चादर आदि को) एक जगह इकट्ठे किये और उन्हें पंक्ति रूप में स्थापित कर आप स्वयं उनके बीच में बैठ गये। उपकरणों में शिष्यों की कल्पना करके सत्रों की वाचना देने लगे। इतने में आचार्य महाराज लौट कर आ गये। उपाश्रय में से आने वाली आवाज उन्हें दूर से सुनाई पड़ी। आचार्य विचारने लगे"क्या शिष्य, इतनी जल्दी वापिस लौट आये हैं ?' कुछ निकट आने पर उन्हें वज्र मुनि की आवाज सुनाई पड़ी। आचार्य कुछ पीछे हट कर थोड़ी देर खड़े रहे और वज्र मुनि का वाचना देने का ढंग . देखने लगे। उनका ढंग देख कर आचार्य को बड़ा आश्चर्य हुआ। इसके पश्चात् वज्र मुनि को सावधान करने के लिए ऊँचे स्वर से "णिसीहिया" (नषेधिकी) का उच्चारण किया। वज्र मुनि ने तत्काल उन सब उपकरणों को यथास्थान रख दिया और उठ कर विनयपूर्वक गुरु महाराज के पैरों को पोंछा। - 'वज्र मुनि श्रुतधर हैं, किन्तु इसे छोटा समझ कर दूसरें इसकी अवज्ञा न कर दें' - ऐसा सोच कर आचार्य ने पांच छह दिनों के लिए दूसरी जगह विहार कर दिया। साधुओं को वाचना देने का कार्य वज्र मुनि को सौंपा गया। सभी साधु भक्तिपूर्वक वज्रमुनि से वाचना लेने लगे।
प्रकार समझाने लगे कि मन्द बुद्धि शिष्य भी बडी आसानी के साथ उन तत्त्वों को समझ लेते। पहले पढ़े हुए श्रुतज्ञान में से भी साधुओं ने बहुत-सी शंकाएँ की, उनका खुलासा भी वज्र मुनि ने अच्छी तरह कर दिया। साधु, वज्र मुनि को बहुत मानने लगे।
कुछ समय के पश्चात् आचार्य वापिस लौट आये। उन्होंने साधुओं से वाचना के विषय में
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