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________________ मति ज्ञान - ब्रह्मदत्त की रक्षा १५९ एक समय श्रेष्ठ जाति की हथिनी के साथ तुच्छ जाति के हाथी को देखकर कुमार ने उन्हें मृत्यु सूचक शब्द कहे। इसी प्रकार एक समय कुमार, एक हंसनी और एक बगुले को पकड़ कर लाया और अन्तःपुर में जाकर उच्च स्वर में कहने लगा - "इस हंसनी और बगुले के समान जो रमण करेंगे, उन्हें मैं मृत्यु दण्ड दूंगा।" - कुमार के वचनों को सुनकर दीर्घपृष्ठ ने रानी से कहा - "कुमार यह बात अपने को लक्षित करके कह रहा है। बड़ा होने पर यह हमारे लिए अवश्य विघ्नकर्ता होगा। इसलिए इस विष-वृक्ष को उगते ही उखाड़ देना ठीक है।" रानी ने कहा - "आपका कहना ठीक है। इसके लिए कोई उपाय सोचिये, जिससे अपना कार्य भी पूरा हो जाय और लोक-निन्दा भी न हो।" दीर्घपृष्ठ ने कहा - "इसका एक उपाय है और वह यह है कि कुमार का विवाह शीघ्र कर दिया जाय। उसके निवास के लिए एक लाख का घर बनवाया जाये। जब कुमार उसमें सोने के लिए जाय, तो रात्रि में उस महल को आग लगा दी जाय, जिससे वधु सहित कुमार जल कर समाप्त हो जाय।' - कामान्ध बनी हुई रानी ने दीर्घपृष्ठ की बात स्वीकार कर ली। उसने एक लाक्षा-गृह तैयार करवाया। फिर पुष्पचूल राजा की कन्या के साथ कुमार ब्रह्मदत्त का विवाह कर दिया। ज़ब धनु मंत्री को दीर्घपृष्ठ और चुलनी रानी के षड्यंत्र का पता चला, तो उसने दीर्घपृष्ठ के पास आकर निवेदन किया-"स्वामिन्! अब मैं वृद्ध हो गया हूँ। शेष जीवन ईश्वर भजन में व्यतीत करना चाहता हूँ। मेरा पुत्र वरधुन अब सब तरह से योग्य हो गया है। वह आपकी सेवा करेगा।" इस प्रकार निवेदन करके धनुमंत्री गंगा नदी के किनारे पर आया। वहाँ एक बड़ी दानशाला खोल कर दान देने लगा। दान देने के बहाने उसने अपने विश्वसनीय पुरुषों द्वारा उस लाक्षा-गृह में एक सुरंग बनवाई। इसके पश्चात् उसने राजा पुष्पचूल को भी इस सारी बात की सूचना कर दी। इससे उसने अपनी पुत्री को न भेज कर एक दासी को भेज दिया। रात्रि को सोने के लिए ब्रह्मदत्त को उस लाक्षागृह में भेजा। ब्रह्मदत्त अपने साथ मंत्रीपुत्र वरधनु को भी ले गया। आधी रात के समय दीर्घपृष्ठ और चुलनी रानी द्वारा भेजे हुए पुरुष ने उस लाक्षागृह में आग लगा दी। आग चारों तरफ फैलने लगी। ब्रह्मदत्त ने वरधनु से पूछा कि 'यह क्या बात है? तब उसने दीर्घपृष्ठ और चुलनी रानी द्वारा किये गये षड्यंत्र का सारा भेद बतलाया और कहा कि - 'आप घबराइये नहीं। मेरे पिताजी ने इस महल में एक सुरंग खुदवाई है, जो गंगा नदी के किनारे जाकर मिलती है।' वरधनु की यह बात सुनकर कुमार ब्रह्मदत्त और वरधनु दोनों उस सुरंग द्वारा गंगा नदी के किनारे जाकर निकले। वहाँ धनु मंत्री ने दो घोड़े तैयार रखे थे, उन पर सवार होकर वे वहाँ से बहुत दूर निकल गये। इसके पश्चात् वरधनु के साथ ब्रह्मदत्त अनेक नगर एवं देशों में गया और अनेक राजकन्याओं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004198
Book TitleNandi Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size7 MB
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