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माकन्दी नामक नववां अध्ययन - देवी का दूसरा दुष्प्रयास
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गाहाओजह रयणदीवदेवी तह एत्थं अविरई महापावा। जह लाहत्थी वणिया तह सुहकामा इहं जीवा॥१॥ जह तेहिं भीएहिं दिट्ठो आघाय मंडले पुरिसो। संसार दुक्खभीया पासंति तहेव धम्म कह॥२॥ जह तेण तेसि कहिया देवी दुक्खाण कारणं घोरं। तत्तो चिय णित्थारो सेलगजक्खाओ णण्णत्तो॥३॥ तह धम्मकही भव्वाण साहए दिट्ठअविरइ सहावो। सयलदुहहेउभूओ विसया विरयंति जीवाणं॥४॥ सत्ताणं दुहत्ताणं सरणं चरणं जिणिंदपण्णत्तं। आणंदरूवणिव्वाण साहणं तह य देसेइ॥५॥ जह तेसिं तरियव्वो रुद्दसमुद्दो तहेव संसारो। 'जह तेसि सगिहगमणं णिव्वाणगमो तहा एत्थं ॥६॥ . . जह सेलगपिट्ठाओ भट्ठो देवीइ मोहियमईओ।
सावयसहस्सपउरम्मि सायरे पाविओ णिहणं ॥७॥ तह अविरईइ णडिओ चरणचुओ दुक्खसावयाइण्णे। णिवडइ अपार संसार सायरे दारुण सरूवे॥८॥ जह देवीए अक्खोहो पत्तो सट्ठाण जीवियसुहाई। तह चरणट्ठिओ साहू अक्खोहो जाइ णिव्वाणं॥६॥
॥णवमं अज्झयणं समत्तं॥ शब्दार्थ - दिहअविरइसहाओ - अविरति के स्वरूप को दिखलाकर, दुहत्ताणं - दुःखार्तसांसारिक दुःखों से पीड़ित, देसेइ - उपदिष्ट करता है, रुद्दसमुद्दो - भयानक समुद्र, भट्ठो - भ्रष्ट-गिरा हुआ, पउरम्मि - प्रचुर, पाविओ - पातित-गिराया हुआ, णिहणं - मृत्यु, णडिओ
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