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माकन्दी नामक नववां अध्ययन - देवी का दूसरा दुष्प्रयास
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तदनंतर जिनपालित एवं उसके माता-पिता ने मित्र, जातीयजनों के साथ रोते हुए मृतक जिनरक्षित के सभी लौकिक कार्य संपादित किए। समय बीतने पर वे शोक रहित हो गए, इस दुःख को भूल गए।
तए णं जिणपालियं अण्णया कयाइ सुहाणवरगयं अम्मापियरो एवं वयासीकहण्णं पुत्ता! जिणरक्खिए कालगए? . भावार्थ - एक दिन, किसी समय जिनपालित सुख पूर्वक आसन पर बैठा था, तब उसके माता-पिता ने पूछा - बेटा! जिनरक्षित की किस प्रकार मृत्यु हुई?
(६४) __तए णं से जिणपालिए अम्मापिऊणं लवणसमुद्दोत्तारं च कालियवाय
समुत्थणं (च) पोयवहणविवत्तिं च फलहखंड आसायणं च रयण-दीवुत्तारं रयणदीवदेवया गिहं च भोगविभूई च रयणदीव देवया अप्पाहणं च सूलाइयपुरिसदरिसणं च सेलगजक्खआरुहणं च रयणदीवदेवयाउवसग्गं च जिणरक्खियविवत्तिं च लवण समुद्दउत्तरणं च चंपागमणं च सेलगजक्ख आपुच्छणं च जहाभूयमवितहमसंदिद्धं परिकहेइ।
शब्दार्थ - अवितहं - सत्य-जैसा का तैसा, असंद्धिद्धं - असंदिग्ध-संदेह रहित।
भावार्थ - यह सुनकर जिनपालित ने माता-पिता को तूफान का आना, जहाज का नष्ट । होना, काष्ठ फलक का प्राप्त होना, रत्न द्वीप में उतरना, रत्नद्वीप देवी के प्रासाद में पहुँचना, वहाँ का भोग-वैभव, देवी का वध स्थान, शूलारोपित पुरुष को देखना, शैलक यक्ष पर आरूढ होना, रत्नद्वीपदेवी द्वारा किया गया उपसर्ग, जिन रक्षित की मृत्यु, लवण समुद्र को पार करना, चंपा नगरी में पहुँचना तथा शैलक यक्ष का विदा होना-यह सारा वृत्तांत जैसा घटित हुआ था, . ज्यों का त्यों कहा।
(६५) - तए णं जिणपालिए जाव अप्पसोगे जाव विउलाई भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरइ।
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