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________________ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र SRIDRDERERRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRREதைலம் S wameranteeroen पत्तट्ठा कुसला मेहावी णिउणसिप्पोवगया बहुसु पोयवहणसंपराएसु कयकरणा लद्धविजया अमूढा अमूढहत्था एगं महं फलगखंडं आसादेंति। ' ___ शब्दार्थ - भिजमाणीए - भग्न हो जाने पर, छेया - चतुर, पत्तट्ठा - स्थिति का आकलन करने वाले, सिप्पोवगया - तैरने आदि की कलाओं में निष्णात, कवकरणा - कार्य कुशल, लद्धविजया - समुद्र पार करने में समर्थ, अमूढहत्था - तैरने में कुशल और स्फूर्तियुक्त, आसादेंति - प्राप्त किया। भावार्थ - उस नौका के भग्न हो जाने पर बहुत से पुरुष विपुल माल-असबाब सहित जल के भीतर समा गए। माकंदी पुत्र बड़े ही चतुर, दक्ष स्थिति को आंकने वाले, तैरने आदि की कलाओं में निष्णात, जहाज की यात्रा में आने वाले विघ्नों से सामना करने में समर्थ, तैरने में जागरूक और स्फूर्ति युक्त थे। उन्होंने एक बड़ा काठ का फलक प्राप्त कर लिया। (१२) जंसिं च णं पएसंसि से पोयवहणे विवण्णे तंसि च णं पएसंसि एगे महं रयणद्दीवे णामं दीवे होत्था अणेगाइं जोयणाई आयामविक्खंभेणं अणेगाई जोयणाई परिक्खेवेणं णाणादुमसंडमंडिउद्देसे सस्सिरीए पासाईए दरिसणिजे अभिरूवे पडिरूवे। तस्स णं बहुमज्झदेसभाए तत्थ णं महं एगे पासायवडेंसए होत्था अन्भुग्गयमूसिय जाव सस्सिरी(भू)यरूवे पासाईए । शब्दार्थ - पएसंसि - प्रदेश में, स्थान में, विवण्णे- विपन्न-भग्न, णाणादुमसंडमंडिउद्देसेअनेक प्रकार के वृक्षों के वनों से सुशोभित, अब्भुग्गयमूसिय - अत्यंत ऊँचा उठा हुआ। भावार्थ - जिस जगह जहाज नष्ट हुआ था, वहीं रत्न द्वीप नामक बड़ा द्वीप था। वह अनेक योजन लंबा-चौड़ा और अनेक योजन विस्तीर्ण था। वह अनेक प्रकार के वृक्षयुक्त वनों से सुशोभित और सुंदर था, बड़ा ही दर्शनीय और रमणीय था। उसके बीचों-बीच विशाल, उत्तम प्रासाद था। वह अत्यंत ऊंचा था यावत् अत्यंत शोभायुक्त, उल्लासप्रद, अति सुंदर आकार युक्त था। (१३) तत्थ णं पासायवडेंसर रयणदीवदेवया णामं देवया परिवसइ पावा चंडा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004197
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size7 MB
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