________________
३४०.
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध පපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපුපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපප
भावार्थ - इसी क्रम से सतेरा, सौदामिनी, इन्द्रा, घना तथा विद्युता-इन पांच देवियों के पांच अध्ययन ज्ञातव्य हैं। ये सब धरणेन्द्र की अग्रमहीषियाँ कही गई हैं।
अध्ययन ७ से १२ तक
सूत्र-७
एए छ अज्झयणा वेणुदेवस्स वि अविसेसिया भाणियव्वा।
भावार्थ - इसी प्रकार वेणुदेव के भी छह अध्ययन अविशेष रूप में बिना किसी अंतर के . कथनीय हैं।
अध्ययन १३ से ५४ तक
सूत्र-८ एवं जाव घोसस्स वि एए चेव छ अज्झयणा।
भावार्थ - इसी प्रकार हरि, अग्निशिख, पूर्ण, जलकांत, अमितगति, वेलंब एवं घोष-इन सात इन्द्रों की पटरानियों के भी छह-छह अध्ययन - कुल बयालीस अध्ययन कथनीय हैं।
सूत्र-६ एवमेते दाहिणिल्लाणं इंदाणं चउप्पण्णं अज्झयणा भवंति सव्वाओ वि वाणारसीए काममहावणे चेइए।
तइय वग्गस्स णिक्खेवओ।
भावार्थ - इस प्रकार दक्षिण दिशावर्ती इन्द्रों के चौपन अध्ययन होते हैं। ये सभी देवियाँ पूर्वभव में, वाराणसी में उत्पन्न हुई और काममहावन चैत्य में भगवान् पार्श्व से दीक्षित हुई। इस प्रकार यहाँ तृतीय वर्ग का निक्षेप योजनीय है।
॥ चौपन अध्ययन समाप्त॥ ॥ तृतीय वर्ग समाप्त॥
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org