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प्रथम वर्ग-काली नामक प्रथम अध्ययन - देवी के रूप में उत्पत्ति
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भावार्थ - यों तत्काल समुत्पन्न काली देवी सूर्याभ देव की तरह भाषा पर्याप्ति और मनःपर्याप्ति आदि पांचों पर्याप्तियों से समायुक्त हो गई।
सूत्र-३२ तए णं सा कालीदेवी चउण्हं सामाणियसाहस्सीणं. जाव अण्णेसिं च बहूणं कालवडेंसगभवणवासीणं असुरकुमाराणं देवाण य देवीण य आहेवच्चं जाव विहरइ। एवं खलु गोयमा! कालीए देवीए सा दिव्वा देविड्डी ३ लद्धा पत्ता अभिसमण्णागया।
भावार्थ - तत्पश्चात् काली देवी चार सहस्त्र सामानिक देवियों यावत् और बहुत से कालावतंसक विमानवासी बहुत से असुरकुमार देवों और देवियों का आधिपत्य करती हुई यावत् विहरणशील रही, सुख भोगती रही। .. भगवान् महावीर स्वामी ने गौतम को फरमाया कि काली देवी को वह उत्तम देव ऋद्धि, . श्रेष्ठ देवधुति तथा उज्ज्वल आभा इस प्रकार लब्ध, प्राप्त, स्वायत्त हुई।
सूत्र-३३ . कालीए णं भंते! देवीए केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? गोयमा! अड्डाइज्जाइं पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता। काली णं भंते! देवी ताओ देवलोगाओ अणंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गच्छिहिइ, कहिं उववजिहिइ?
गोयमा! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ जाव अंतं काहिड़।
भावार्थ - गौतम स्वामी ने पूछा-भगवन्! काली देवी की देवलोक में कितने काल की स्थिति बतलाई गई है?
भगवान् बोले - हे गौतम! उसकी स्थिति ढाई पल्योपम बतलाई गई है। भगवन्! काली देवी उस देवलोक के बाद वहाँ से च्यवन कर फिर कहाँ उत्पन्न होगी?
हे गौतम! वह महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होगी यावत् संयम-साधना द्वारा सिद्धत्व, बुद्धत्व, मुक्तत्व प्राप्त करेगी, समस्त दुःखों का अंत करेगी।
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