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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र xccccccccccccccccccccccccccxcccccccccccccceeacocce कंडरीक बोला - हाँ, यही बात है।
(२१) तए णं से पुंडरीए राया कोडंबियपुरिसे सद्दावेइ २ त्ता एवं वयासी खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! कंडरीयस्स महत्थं जाव रायाभिसेयं उवट्ठवेह जाव रायाभिसेएणं अभिसिंचइ।
भावार्थ- यह सुनकर राजा पुंडरीक ने कौटुंबिक पुरुषों को बुलाया और कहा - देवानुप्रियो! शीघ्र ही कंडरीक का बड़े समारोह के साथ राज्याभिषेक आयोजन करो यावत् कंडरीक का राज्याभिषेक कर दिया गया।
पुंडरीक प्रव्रजित
(२२) तए णं पुंडरीए सयमेव पंचमुट्टियं लोयं करेइ सयमेव चाउज्जामं धम्म पडिवजइ २ ता कंडरीयस्स संतियं आयारभंडयं गेण्हइ २ ता इमं एयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ-कप्पइ मे थेरे वंदित्ता णमंसित्ता थेराणं अंतिए चाउज्जामं धम्म उवसंपज्जित्ताणं तओ पच्छा आहारं आहारित्तए त्तिकटु इमं च एयारूवं अभिग्गहं आभिगिण्हेत्ताणं पुंडरिगिणीए पडिणिक्खमइ २ त्ता पुव्वाणुव्विं चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे (जेणेव) थेरा भगवंतो तेणेव पहारेत्थ गमणाए।
भावार्थ - इसके उपरांत पुंडरीक ने स्वयं ही पंचमुष्टिक लोच किया एवं चातुर्याम धर्म स्वीकार कर लिया। वैसा कर उसने राजा कंडरीक के पास से साधु जीवनोपयोगी पात्रोपकरण ले लिए और उसने ऐसा अभिग्रह किया कि स्थविर भगवंतों के पास से चातुर्याम धर्म स्वीकार करने के पश्चात् ही मैं आहार ग्रहण करूँगा। इस प्रकार का अभिग्रह कर, वह पुंडरीकिणी नगरी से रवाना हुआ। तदनंतर ग्रामानुग्राम विहार करते हुए, जहाँ स्थविर भगवंत.थे, उस ओर चल पड़ा।
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