________________
सुसुमा नामक अट्ठारहवां अध्ययन
possessex
-
भावार्थ - देवानुप्रियो ! राजगृह नगर में अत्यंत धनी धन्य नामक सार्थवाह है। उसके पांच पुत्रों के अनंतर, भार्या भद्रा से उत्पन्न सुंसुमा नामक पुत्री है। वह सर्वांग सुंदरी यावत् अत्यधिक रूपवती है। देवानुप्रियो! चलो, धन्य सार्थवाह के घर को लूटें। तुम लोग विपुल धन, सुवर्ण यावत् रत्नादि लेना। मैं सुंसमा कन्या को लूंगा ।
इस प्रकार उन पाँच सौ चोरों ने नायक चिलात के कथन को स्वीकार किया ।
धन्य सार्थवाह को लूटने की योजना
(२२)
तए णं से चिलाए चोरसेणावई तेहिं पंचहि चोरसएहिं सद्धिं अल्लचम्मं दुरूहइ २ पच्चावरण्हकालसमयंसि पंचहिं चोरसएहिं सद्धिं सण्णद्ध जाव गहिया उहपहरणा माझ्य गोमुहिएहिं फलएहिं णि ( क ) क्किट्ठाहिं असिलट्ठीहिं अंसगएहिं तोणेहिं सज्जीवेहिं धणूहिं समुक्खित्तेहिं सरेहिं समुल्लालियाहिं दीहाहिं ओसारियाहिं उरुघंटियाहिं छिप्पतूरेहिं, वज्जमाणेहिं महया २ उक्किट्ठसीहणाय (चोरकलकलरखं) जाव समुद्दरवभूयं (पिव) करेमाणा सीहगुहाओ चोरपल्लीओ पडिणिक्खमंति २ त्ता जेणेव रायगिहे णयरे तेणेव उवागच्छंति २ त्ता रायगिहस्स अदूरसामंते एगं महं गहणं अणुप्पविसंति २ त्ता दिवसं खवेमाणा चिट्ठति ।
-
Jain Education International
शब्दार्थ अल्लचम्मं गीला चमड़ा, माइयगोमुहिएहिं - रींछ के बालों से युक्त गोमुखाकार, फलएहिं - पट्टियों से, णिक्किट्ठाहिं - म्यानों से निकाली हुई, तोणेहिं - तूणीर, सज्जीवेहिं - प्रत्यंचारोपित, समुक्खित्ते हिं बाहर निकाले हुए, समुल्लालियाहिं उठाई हुई, दीहाहिं - बछियों से, ओसारियाहिं - अवस्वरित-नादित, छिप्प तूरीवाद्य, समुद्दरवभूयं - उछाले मारते समुद्र की सी ध्वनि ।
ऊपर.
शीघ्र, तूरेहिं
-
२८३ PLE
-
For Personal & Private Use Only
-
भावार्थ - चोर सेनापति चिलात अपने पाँच सौ चोरों के साथ चोर्यसिद्धि हेतु तत्परंपरानुरूप गीले चमड़े के आसन पर बैठा । फिर दिन के आखिरी प्रहर में अपने पाँच सौ चोर साथियों के साथ तैयार हुआ यावत् उसने शस्त्रास्त्र ग्रहण किए। भालू के बालों से युक्त गोमुखाकार पट्टियाँ देह पर बांधी। म्यानों से तलवारें निकाल लीं। कंधों पर तूणीर रखे। धनुषों पर प्रत्यंचाएँ चढ़ालीं। हाथ में बाण ले लिये। बर्छियाँ ऊँची उठा ली। बड़े-बड़े घंटे और तूरी वाद्य शीघ्रं ही बज उठे। इस धूमधाम के साथ जोर-जोर से सिंहनाद का कलरव यावत् उछालें मारते हुए समुद्र
www.jainelibrary.org