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अपरकंका नामक सोलहवां अध्ययन - पांडवों की हार
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राजा पद्मनाभ कवच आदि पहनकर सन्नद्ध हुआ यावत् वह अभिषिक्त हाथी पर सवार हुआ। अश्व, गज, रथ पदातियुक्त चतुरंगिणी सेना के साथ, जहाँ कृष्ण वासुदेव थे, उस ओर गमनार्थ उद्यत हुआ-चल पड़ा।
पद्मनाभ - पांडव संग्राम
(१८५) तए णं से कण्हे वासुदेवे पउमणाभं रायाणं एज्जमाणं पासइ २ ता ते पंच पंडवे एवं वयासी - हं भो दारगा! किण्णं तुम्भे पउमणाभेणं सद्धिं जुज्झिहिह उयाहु पेच्छिहिह? तए णं ते पंच-पंडवा कण्हं वासुदेवं एवं वयासी - अम्हे णं सामी! जुज्झामो तुब्भे पेच्छह तए णं ते पंच-पंडवे सण्णद्ध जाव पहरणा रहे दुरूहंति २ त्ता जेणेव पउमणाभे राया तेणेव उवागच्छंति २ ता एवं वयासी - अम्हे पउमणाभे वा राय - तिकट्ठ पउमणाभेणं सद्धिं संपलग्गा यावि होत्था। ... भावार्थ - कृष्ण वासुदेव ने पद्मनाभ को आते हुए देखा। उन्होंने पांडवों से कहा - वत्सो! क्या तुम पद्मनाभ के साथ युद्ध करोगे अथवा मुझे उनके साथ लड़ते हुए देखोगे?
तब पाँचों पांडवों ने कृष्ण वासुदेव से कहा - स्वामी! हम लड़ेंगे, आप देखें।
तब पाँचों पाण्डव कवच आदि से सन्नद्ध होकर यावत् शस्त्राशस्त्र लेकर रथारूढ़ हुए। राजा पद्मनाभ के पास आए और उससे बोले - “या तो आज हम हैं या पद्मनाभ राजा है", यों कहकर वे राजा पद्मनाभ के साथ युद्धरत हो गए। ... पांडवों की हार
(१८६) तए णं से पउमणाभे राया ते पंच-पंडवे खिप्पामेव हयमहियपवरविवडियचिंधद्धयपडागा जाव दिसोदिसिं पडिसेहेइ। तए णं ते पंच पंडवा पउमणाभेणं रण्णा हयमहिय पवर विवडिय जाव पडिसेहिया समाणा अत्थामा जाव अधारणिजमि त्तिकटु जेणेव कण्हे वासुदेवे तेणेव उवागच्छंति। तए णं से
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