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________________ २०३ अपरकंका नामक सोलहवां अध्ययन - नारद का पदार्पण accccccccccccccccEEKERSECREEKEEEEEEEEESecsceceKICK भावार्थ - एक बार राजा पांडु किसी समय पांचों पाण्डव, कुंतीदेवी एवं द्रौपदी देवी के साथ अन्तःपुर में परिजनबंद से घिरे हुए उत्तम आसन पर विराजमान थे। नारद का पदार्पण (१३९) . इमं च णं कच्छुल्लणारए दंसणेणं अइभद्दए विणीए अंतो २ य कलुसहियए मज्झत्थोवत्थिए य अल्लीण सोमपियदंसणे सुरूवे अमइलसगल परिहिए कालमियचम्म-उत्तरासंगरइयवत्थे दण्डकमण्डलुहत्थे जडामउडदित्तसिरए जण्णोवइयगणेत्तिय मुंजमेहलावागलधरे हत्थकयकच्छभीए पियगंधव्वे धरणिगोयरप्पहाणे संवरणावरणओवय(णउ)णुप्पयणिलेसणीसु य संकामणि अभिओगपण्णत्तिगमणीथंभणीसु य बहूसु विजाहरीसु विजासु विस्सुयजसे इढे रामस्स य केसवस्स य पजुण्णपईवसंबअणिरुद्ध णिसढ उम्मुयसारणगयसुमुहदुम्मुहाईणं जायवाणं अद्भुट्ठाण कुमार कोडीणं हिययदइए संथवए कलहजुद्ध कोलाहलप्पिए भंडणाभिलासी बहूसु य समर सयसंपराएसु दंसणरए समंतओ कलहं सदक्खिणं अणुगवेसमाणे असमाहिकरे दसारवरवीरपुरिसतेलोक्क बलगवगाणं आमंतेऊण तं भगवई ए(प)क्कमणिं गगणगमणदच्छं उप्पइओ गगणमभिलंघयंतो गामागरणगर-खेड-कब्बड-मडंब-दोण-मुहपट्टण-संवाहसहस्समंडियं थिमियमेइणीतलं वसुहं ओलोइंतो रम्मं हत्थिणाउरं उवागए पंडुरायभवणंसि अइवेगेण समोवइए। ___ शब्दार्थ - कलुसहियए - कलुषित हृदय-कलहप्रिय, मज्झत्थोवत्थिए - बाह्य रूप में माध्यस्थ्य भाव युक्त, अल्लीण - आह्लादप्रद, अमइल - निर्मल, सगल - सकल-अखंडित, कालमियचम्म - काले मृग का चर्म, जण्णोवइय - यज्ञोपवीत, गणेत्तिय - रुद्राक्ष माला, मुंजमेहला - मूंज की करधनी, वागल - वल्कल-वृक्ष की छाल, हत्थकय - हाथ में लिए हुए, कच्छभीए - कच्छपी नामक वीणा, धरणिगोयरप्पहाणे - आकाश गामिता के कारण पृथ्वी पर बहुत कम चलने वाले, संवरण - संवरणी-अपने आपको छिपाने की, आवरण - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004197
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size7 MB
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