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________________ अपरकंका नामक सोलहवां अध्ययन - द्रुपद द्वारा घोषणा ૧€ ScoocccccxcccREEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEcx विवेचन - सुरा, मद्य, सीधु और प्रसन्ना, यह मदिरा की ही जातियाँ है। स्वयंवर में सभी प्रकार के. राजा और उनके सैनिक आदि आये थे। द्रुपद राजा ने उन सबका उनकी आवश्यक वस्तुओं से सत्कार किया। इससे यह नहीं समझना चाहिए कि कृष्ण जी स्वयं मदिरा आदि का सेवन करते थे। यह वर्णन सामान्य रूप से है। कृष्ण जी सभी आगत राजाओं में प्रधान थे अतएव उनका नामोल्लेख विशेष रूप से हुआ प्रतीत होता है। ____ यादवों में मांसाहारी होते हुए भी कृष्ण वासुदेव आदि राजा एवं इनके प्रमुख पारिवारिकजन मांसाहारी नहीं थे। द्रपद द्वारा घोषणा (११४) तए णं से दुवए राया पुव्वावरण्हकालसमयंसि कोडंबियपुरिसे सद्दावेइ २ त्ता एवं वयासी-गच्छह णं तुमे देवाणुप्पिया! कंपिल्लपुरे सिंघाडग जाव पहेसु वासुदेव पामोक्खाण य रायसहस्साणं आवासेसु हत्थिखंधवरगया महया २ सद्देणं जाव उग्घोसेमाणा २ एवं वयह-एवं खलु देवाणुप्पिया! कल्लं पाउप्पभायाए दुवयस्स रण्णो धूयाए चुलणीए देवीए अत्तयाए धट्ठज्जुण्णसस्स भगिणीए दोवई रा० सयंवरे भविस्सइ। तं तुब्भे णं देवाणुप्पिया! दुवयं रायाणं अणुगिण्हेमाणा ण्हाया जाव विभूसिया हत्थिखंधवरगया सकोरेंट० सेयवरचामर० हयगयरह० महया भउचडगरेणं जाव परिक्खित्ता जेणेव सयंवरमंडवे तेणेव उवागच्छह २ त्ता पत्तेयं णामकेसु आसणेसु णिसीयह २ त्ता दोवई रा० पंडिवालेमाणा २ चिट्ठह घोसणं घोसेह २ मम एयमाणत्तियं पच्चपिणह। तए णं ते कोडुंबिया तहेव जाव पच्चप्पिणंति। . भावार्थ - तदनंतर राजा द्रुपद ने पूर्वापराह्न-सायंकाल, कौटुंबिक पुरुषों को बुलाया और आज्ञा दी-देवानुप्रियो! तुम हाथी पर सवार होकर जाओ और कांपिल्यपुर नगर के तिराहों, चौराहों यावत् मार्गों पर एवं वासुदेव आदि राजाओं के आवास स्थानों पर जोर-जोर से घोषणा करते हुए ऐसा कहो-देवानुप्रियो! कल प्रातःकाल द्रुपद राजा की पुत्री, चुलनी देवी की आत्मजा, धृष्टद्युम्न की बहिन, उत्तम राजकन्या द्रौपदी का स्वयंवर होगा। देवानुप्रियो! आप द्रुपद राजा पर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004197
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size7 MB
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