________________
१७८
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र . ROOOOOOOOOOOOGooooooooooooooooooooooooooooooocx
शब्दार्थ- हिययडाहे - हृदयदाह-मानसिक पीड़ा, आसासेइ - आश्वस्त किया, अज्जयाएअद्यत्व-इन्हीं दिनों में, दिण्णं सयंवरा - स्वयंवर में ही पति प्राप्ति।
भावार्थ - राजा द्रुपद ने पुत्री द्रौपदी को गोद में बिठाया। उसके रूप लावण्य एवं यौवन को देखकर वह विस्मित हुआ। उसने राजकुमारी द्रौपदी से कहा - पुत्री! मैं जिस किसी राजा या युवराज को तुम्हें भार्या के रूप में स्वयं दूंगा, वहाँ तुम सुखी या दुःखी होगी। ___ यदि दुःखी रहोगी तो जीवन भर के लिए मेरे हृदय में पीड़ा रहेगी। इसलिए पुत्री! मैं थोड़े ही दिनों में तुम्हारा स्वयंवर आयोजित करूंगा। उसी में तुम अपने वर का चयन करो। जिस राजा या राजकुमार का तुम वरण करोगी, वही तुम्हारा पति होगा। ऐसा कर उसने इष्ट, मधुर एवं प्रिय वचनों द्वारा उसे आश्वासन दिया एवं वहाँ से विदा किया। __ स्वयंवर की घोषणा
(८६) तए णं से दुवए राया दूयं सहावेइ २ त्ता एवं वयासी - गच्छह णं तुमं देवाणुप्पिया! बारवई णयरिं। तत्थ णं तुमं कण्हं वासुदेवं समुद्दविजयपामोक्खे दस दसारे बलदेवपामोक्खे पंच महावीरे उग्गसेणपामोक्खे सोलस रायसहस्से पज्जुण्णपामोक्खाओ अद्भुट्ठाओ कुमारकोडीओ संबपामोक्खाओ सहिदुइंतसाहस्सीओ वीरसेणपामोक्खाओ इक्कवीसं वीर पुरिस साहस्सीओ महासेणपामोक्खाओ छप्पण्णं बलवगसाहस्सीओ अण्णे य बहवे राईसरतलवर माडंबिय कोडुंबिय इन्भसेट्टि सेणावइ सत्थवाहपभिइओ करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु बएणं विजएणं वद्धावेहि २ त्ता एवं वयाहि।
शब्दार्थ :- अद्भुट्ठाओ - साढ़े तीन।
भावार्थ - तदनंतर राजा द्रुपद ने दूत को बुलाया और कहा - देवानुप्रिय! तुम द्वारका नगरी जाओ। वहाँ तुम कृष्ण वासुदेव, समुद्रविजय आदि दस दसार्ह बलदेव आदि पाँच महावीर, उग्रसेन आदि सोलह सहस्र राजन्यगण, प्रद्युम्न आदि साढे तीन करोड़ कुमार, साम्ब आदि साठ हजार दुर्दान्त साहसिक-दुर्घर्ष योद्धा, वीरसेन आदि इक्कीस हजार वीर पुरुष, महासेन आदि छप्पन हजार
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org