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________________ अपरकंका नामक सोलहवां अध्ययन - उत्तरवर्ती भवों में भीषण वेदना ********** 9000 १५१ COOOOOOO टुकड़ों से जुड़े वस्त्र धारण करने वाली, खंडमल्लय - टूटा हुआ शिकोरा, खंडघड - फूटे हुए घड़े का टुकड़ा, फुट्टहडाहडसीसा - सिर पर बिखरे हुए बालों से युक्त, मच्छियाचडगरेणं - मक्खियों समूह द्वारा, अणिज्माणमग्गा - पीछा किया जाती हुई, देहं बलियाए - देह निर्वाह हेतु । भावार्थ - नागश्री को जब घर से निकाल दिया गया तो चंपानगरी के तिराहे, चौराहे, चौक, विशाल, राजमार्ग, छोटे मार्ग इत्यादि में बहुत से लोग उसकी अवहेलना, कुत्सा, गर्हा, तर्जना, ताड़ना करने लगे। धिक्कारने लगे। उस पर थूकने लगे। उसे टिकने को कहीं भी कोई स्थान नहीं मिला। वह जीर्ण वस्त्र पहने, खाने के लिए फूटा शिकोरा, पानी पीने के लिए फूटे हुए घड़े के खंड को हाथ में लिए हुए भटकने लगी। उसके सिर के बाल बिखरे थे। गंदगी के कारण मक्खियों का समूह उसका पीछा करता था। वह शरीर निर्वाह हेतु घर-घर भीख मांगकर पेट पालने लगी । (२९) तए णं तीसे णागसिरीए माहणार तब्भवंसि चेव सोलस रोगायंका पाउब्भूया तंजहा - सासे कासे जोणिसूले जाव कोढे । तए णं सा णागसिरी माहणी सोलसहिं रोगायंकेहि अभिभूया समाणी अट्ठदुहट्टवसट्टा कालमासे कालं किच्चा छट्ठी पुढवीए उक्कोसेणं बावीस सागरोवमट्ठिइएसु णरएसु णेरइयत्ताए उववण्णा । भावार्थ - उस नागश्री ब्राह्मणी के उसी भव में वर्तमान जीवन में श्वास, कास, योनिशूल यावत् कुष्ठ आदि सोलह भीषण रोग उत्पन्न हुए । नागश्री उन रोगों से पीड़ित होती हुई आर्त्तध्यान में मृत्यु प्राप्त कर छठी नरक भूमि में उत्कृष्टतः बाईस सागरोपम स्थिति युक्त नारकों में, नारक 5 रूप में उत्पन्न हुई। उत्तरवर्ती भवों में भीषण वेदना (३०) सा णं तओऽणंतरं उव्वट्टित्ता मच्छेसु उववण्णा । तत्थ णं सत्थर्वज्झा दाहवक्कंतीए कालमासे कालं किच्चा अहेसत्तमीए पुढवीए उक्कोसाएं तित्तीस सागरोवमट्ठिएसु णेरइएसु उववण्णा । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004197
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size7 MB
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