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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र acococccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccx उनके पास से वे चले। धर्मरुचि अनगार की सब ओर खोज करते हुए, जहाँ स्थंडिल परठने की भूमि थी, वहाँ आए। वहाँ आकर उन्होंने धर्मरुचि अनगार के शरीर को निष्प्राण, निश्चेष्ट एवं निर्जीव देखा। देखते ही उनके मुँह से निकल पड़ा-हाय! कैसा अकृत्य हो गया? उन्होंने धर्मरुचि अनगार का परिनिर्वाणवर्ती-मृत शरीर व्युत्सर्जन रूप कायोत्सर्ग किया। वैसा कर धर्मरुचि अनगार के आचारोपयोगी पात्रों को लिया तथा स्थविर धर्मघोष के पास आए एवं ईर्यापथिक-गमनागमन प्रतिक्रमण किया और इस प्रकार कहा।
(२१) एवं खलु अम्हे तुब्भं अंतियाओ पडिणिक्खमामो २ त्ता सुभूमिभागस्स उज्जाणस्स परिपेरंतेणं धम्मरुइस्स अणगारस्स सव्वं जाव करेमाणे जेणेव थंडिल्ले तेणेव उवागच्छामो जाव इहं हव्वमागया, तं कालगए णं भंते! धम्मरुई अणगारे इमे से आयारभंडए।
भावार्थ - हम आपकी आज्ञानुसार चलकर सुभूमिभाग उद्यान में आए। धर्मरूचि अणगार की चारों ओर खोज करते हुए स्थंडिल भूमि के पास आए यावत् उनके शरीर को मृत पाया। यहाँ शीघ्र ही, आपके पास लौट आए। भगवन्! धर्मरुचि अनगार कालंगत हो गए हैं। ये उनके दैनंदिन प्रयोग में आने वाले पात्र आदि उपकरण हैं।
.. (२२) तए णं ते धम्मघोसा थेरा पुव्वगए उवओगं गच्छंति २ ता समणे णिग्गंथे णिग्गंथीओ य सद्दावेंति २त्ता एवं वयासी - एवं खलु अज्जो! मम अंतेवासी धम्मरुई णाम अणगारे पगइभद्दए जाव विणीए मासंमासेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं जाव णागसिरीए माहणीए गिहे अणुपविठे। तए णं सा णागसिरी माहणी जाव णिसिरइ। तए णं से धम्मरुई अणगारे अहापज्जत्तमि-तिकटु जाव कालं अणवकंखमाणे विहरइ।
शब्दार्थ - अणिक्खित्तेणं - निरंतर। भावार्थ - स्थविर धर्मघोष ने पूर्वश्रुत में चतुर्दश पूर्व से संबद्ध ज्ञान में उपयोग लगाया।
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