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________________ तेतली पुत्र नामक चौदहवां अध्ययन - आत्महत्या का असफल प्रयास . ११६ පපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපා आत्महत्या का असफल प्रयास (४८) तं सेयं खलु मम अप्पाणं जीवियाओ ववरोवित्तए - त्तिकट्ट एवं संपेहेइ २ त्ता तालउडं विसं आसगंसि पक्खिवइ, से य विसे णो संकमइ। तए णं से तेयलिपुत्ते (अमच्चे) णीलुप्पल जाव असिं खंधेसि ओहरइ, तत्थ वि य से धारा ओपल्ला। तए णं से तेयलिपुत्ते जेणेव असोगवणिया तेणेव उवागच्छइ २ पासगं गीवाए बंधइ २ त्ता रुक्खं दुरूहइ २ त्ता पासं रुक्खे बंधइ २ ता अप्पाणं मुयइ तत्थ वि य से रजू छिण्णा। तए णं से तेयलिपुत्ते महइ महालयं सिलं गीवाए बंधइ २ त्ता अत्थाहमतारमपोरिसियंसि उदगंसि अप्पाणं मुयइ, तत्थ वि से थाहे जाए। तए णं से तेयलिपुत्ते सुक्कंसि तणकूडंसि अगणिकायं पक्खिवइ २ त्ता अप्पाणं मुयइ, तत्थ वि य से अगणिकाए विज्झाए। . शब्दार्थ - तालउडं - अत्यंत तीव्र, आसगंसि - मुख में, संकमइ - प्रभाव किया, ओहरइ - प्रहार करता है, ओपल्ला - कुंठित, पासगं - फंदा, अतारं - न तीरे जा सकने योग्य, अपोरिसियंसि - पुरुष प्रमाण रहित-अपरिमित, थाहे - छिछला, विज्झाए - बुझ गई। ___ भावार्थ - ऐसी स्थिति में तेतली पुत्र ने विचार किया कि मैं अपने जीवन को समाप्त कर दूं। यों सोच कर उसने अपने मुँह में तालपुट विष रखा किंतु विष ने कोई असर नहीं किया। तत्पश्चात् उसने नीले कमल यावत् अलसी पुष्प आदि के सद्दश नील आभा युक्त तीक्ष्ण तलवार से अपने कंधे पर प्रहार किया किन्तु उसकी धार कुंठित हो गई। इसके पश्चात् तेतलीपुत्र अशोक वाटिका में गया। अपने गले में फंदा लगाया पेड़ पर चढ़ा, फंदे को पेड़ से बांधा, अपने आपको नीचे गिराया तो फंदे की रस्सी टूट गई। तेतली पुत्र ने एक बहुत बड़ी शिला को गले में बांधा एवं अथाह, अतरणीय, अपरिमित जल में अपने आपको डाल दिया तो वह जल उसके लिए छिछला बन गया। फिर तेतली पुत्र ने सूखे तिनकों के ढेर में आग लगाई और अपने आपको डाल दिया तो वह आग ही बुझ गई। (४६) तए णं से तेयलिपुत्ते एवं वयासी-सद्धेयं खलु भो समणा वयंति, सद्धेयं . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004197
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size7 MB
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