SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 102
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मण्डुक (दर्दुर) ज्ञात नामक तेरहवां अध्ययन - नंद द्वारा पुष्करिणी का निर्माण ७३ ॥ Reccsao50DRECORDERSEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEESESESESEX नन्द का सम्यक्त्व से वैमुख्य (८) तए णं से णंदे मणियार सेट्ठी अण्णया कयाइ असाहुदसणेण य अपजुवासणाए य अणणुसासणाए य असुस्सूसणाए य सम्मत्तपज्जवेहिं परिहायमाणेहिं २ मिच्छत्तपजवेहिं परिवड्डमाणेहिं २ मिच्छत्तं विप्पडिवण्णे जाए यावि होत्था। .. शब्दार्थ - असाहुदसणेण - साधुओं का दर्शन न होने से, अपज्जुवासणाए - उनका सान्निध्य लाभ न होने से, असुस्सूसणाए - उपदेश श्रवण का अवसर न मिलने से, सम्मत्तपज्जवेहि- सम्यक्त्व के पर्याय, विप्पडिवण्णे - विप्रतिपन्न-विपरीत परिणाम युक्त। . भावार्थ - ऐसा प्रसंग बना कि साधुओं के दर्शन, सान्निध्य लाभ, सुश्रूषा, उपदेश श्रवण का अवसर न मिलने से नंद मणिकार के सम्यक्त्व के पर्याय घटते गए तथा मिथ्यात्व के पर्याय बढ़ते गए। परिणाम स्वरूप वह मिथ्यात्व में विप्रतिपन्न हो गया-मिथ्यात्वी बन गया। नंद द्वारा पुष्करिणी का निर्माण ... तए णं णंदे मणियार सेट्ठी अण्णया (कयाइ) गिम्हकाल समयंसि जेट्ठामूलंसि मासंसि अट्ठमभत्तं परिगेण्हइ २ त्ता पोसहसालाए जाव विहरइ। तए णं णंदस्स अट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि तण्हाए छुहाएं य अभिभूयस्स समाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए० धण्णा णं ते जाव ईसरपभियओ जेसिं णं रायगिहस्स बहिया बहूओ वावीओ पोक्खरणीओ जाव सरसरपंतियाओ जत्थ णं बहुजणो पहाइ य पियइ य पाणियं च संवहइ। तं सेयं खलु ममं कल्लं (पाउ०) सेणियं रायं आपुच्छित्ता रायगिहस्स बहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए वेब्भारपव्वयस्स अदूरसामंते वत्थुपाढगरोइयंसि भूमिभागंसि (जाव) णंदं पोक्खरिणिं खणावेत्तए त्तिकटु एवं संपेहेइ। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004197
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy