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________________ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र वट्टमाणे - वर्तमान, दोहल-काल-समयसि - दोहद का समय आने पर, एयारूवे - इस प्रकार का, अकाल-मेहेसु-असमय में मेघों को देखने का, पाउभवित्था-प्रादूर्भूत-उत्पन्न हुआ। भावार्थ - तत्पश्चात् जब दो माह बीत गए, तीसरा महिना चल रहा था, तब रानी के गर्भ के दोहद (गर्भस्थ जीव के विचारानुसार गर्भवती स्त्री की इच्छा विशेष) का समय आया। रानी धारिणी के मन में अकाल-असमय में, वर्षा ऋतु के बिना ही मेघों को देखने की इच्छा उत्पन्न हुई। (४४) धण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ, संपुण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयत्थाओ णं ताओ०, कयपुण्णाओ, कयलक्खणाओ, कय-विहवाओ, सुलद्धे णं तासिं माणुस्सए जम्म जीविय फले जाओ णं मेहेसु अब्भुग्गएसु अब्भुज्जएसु अब्भुण्णएसु अब्भुट्टिएसु सगज्जिएसु सविज्जुएसु सफुसिएसु सथणिएसु धंतधोय-रुप्पपट्ट-अंकसंख-चंद-कुंद-सालिपिट्ठरासि-समप्पभेसु चिउर हरियालभेय-चंपग-सण-कोरंट सरिसय पउमरय-समप्पभेसु लक्खारस-सरसरत्तकिंसुय-जासुमण-रत्त बंधुजीवग जाइहिंगुलय-सरस कुंकुम-उरब्भ-ससरुहिर-इंदगोवग-समप्पभेसु बरहिणणीलगुलिय-सुग-चास-पिच्छ-भिंगपत्त-सासग-णीलुप्पलणियर-णवसिरीसकुसुम-णवसद्दल-समप्पभेसु जच्चंजण-भिंगभेय-रिट्ठग-भमरावलि-गवलगुलिय-कज्जल समप्पभेसु फुरंतविज्जुय-सगज्जिएसु वायवस-विपुल-गगणचवल-परिसक्किरेसु णिम्मलवर-वारिधारा-पयलियपयंड-मारुय-समाह य समोत्थरंत उवरिउवरितुरियवासं पवासिएसु धारापहकर-णिवाय-णिव्वाविय मेइणितले हरिय गणकंचुए, पल्लविय पायवगणेसु, वल्लिवियाणेसु पसरिएसु, उण्णएसु सोहग्गमुवागएसु, णगेसु णएसु वा, वेभारगिरि-प्पवायतड-कडगविमुक्केसु उज्झरेसु, तुरियपहाविय-पल्लोट्ट-फेणाउलं सकलुसं जलं वहंतीसु गिरिणईसु, सज्ज-ज्जुणणीव-कुडय कंदल-सिलिंध-कलिएसु उववणेसु, मेहरसिय-हट्टतुट्ठ-चिट्ठिय-हरिसवस-पमुक्क-कंठकेकारवं मुयंतेसु बरहिणेसु, उउ-वस Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004196
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size9 MB
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