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मल्ली नामक आठवां अध्ययन - मल्ली द्वारा प्रतिबोध
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का आवागमन बहुत कम हो, लोग शांति से विश्राम कर रहे हों, उनमें से प्रत्येक राजा को राजधानी में प्रविष्ट करवा कर गर्भ गृहों में पहुंचा दें। फिर राजधानी मिथिला के द्वार बंद करवा , दें और नगर की रक्षा हेतु सन्नद्ध रहें।
(१३६) तए णं कुंभए राया एवं तं चेव जाव पवेसेइ रोहसजे चिट्ठइ।
भावार्थ - तब राजा कुंभ ने पूर्वोक्त रूप में यावत् मिथिला में प्रवेश कराया, गर्भगृह में ठहराया, स्वयं नगरी की रक्षा हेतु सुसज्ज रहा।
(१३७) तए णं ते जियसत्तुपामोक्खा छप्पि य रायाणो कल्लं पाउनभूचा जाव (जलंते) जालंतरेहिं कणगमयं मत्थयछिड्डे पउमुप्पलपिहाणं पडिमं पासंति एस णं मल्ली विदे० तिकट्ट मल्लीए विदे० रूवे य जोव्वणे य लावण्णे य मुच्छिया गिद्धा जाव अज्झोववण्णा अणिमिसाए दिट्ठीए पेहमाणा २ चिट्ठति।।
. भावार्थ - गर्भगृह स्थित जितशत्रु आदि राजाओं ने प्रातःकाल होने पर यावत् जाली में से मल्लीकुमारी की स्वर्णमयी प्रतिमा को देखा, जिसका मस्तक कमलाकार ढक्कन से ढका था। "यह विदेह की उत्तम राजकन्या मल्ली है" यह समझ कर वे उसके रूप सौन्दर्य लावण्य में मूछित लोलुप यावत् अत्यंत आसक्त होते हुए, अनिमेष दृष्टि से देखने लगे। ..... मल्ली द्वारा प्रतिबोध .
(१३८) तए णं सा मल्ली विदे० ण्हाया जाव पायच्छित्ता सव्वालंकार-विभूसिया बहूहिं खुजाहिं जाव परिक्खित्ता जेणेव जालघरए जेणेव कणग पडिमा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तीसे कणगपडिमाए मत्थयाओ तं पउमं अवणेइ। तए णं गंधे णिद्धावइ.से जहाणामए अहिमडेइ वा जाव असुभतराए चेव। .. शब्दार्थ - परिक्खित्ता - परिवेष्टित, अवणेइ - हटाती, णिद्धावइ - निकलने लगी, असुभतराए - अत्यंत विकृति युक्त। .
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