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________________ ४०६ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र (१३१) तए णं ते जियसत्तुपामोक्खा छप्पि रायाणो कुंभयं रायं हयमहियपवरवीरघाइयणिवडिय चिंधद्धयप्पडागं किच्छप्पाणोवगयं दिसोदिसिं पडिसेहिति। . तए णं से कुंभए राया जियसत्तुपामोक्खेहिं छहिं राईहिं हयमहिय जावं पडिसेहिए समाणे अत्थामे अबले अवीरिए जाव अधारणिजमितिकट्ट सिग्धं तुरियं जाव वेइयं जेणेव मिहिला तेणेव उवागच्छइ २ त्ता मिहिलं अणुपविसइ २ त्ता मिहिलाए दुवाराई पिहेइ २ त्ता रोहसजे चिट्ठइ। शब्दार्थ - घाइय - घात करने पर, णिवडिय - निपतित, किच्छप्पाणोवगयं - प्राणं संकट में पड़ गए, पडिसेहिंति - निवारण करते हैं, अत्थामे - आत्मबल रहित, अधारणिजंसामना करने में असमर्थ, रोहसजे - नगर में शत्रुओं के प्रवेश का अवरोध करने में तत्पर। . भावार्थ - जितशत्रु आदि छहों राजाओं ने राजा कुंभ की सेना का हनन, मंथन करते हुए उनके विशिष्ट योद्धाओं को मार डाला, गिरा डाला, राजचिह्न, ध्वजाओं और पताकाओं को छिन्न-भिन्न कर दिया। कुंभ एवं उसकी सेना सब ओर से घिर गई, तब उसने अपने प्राणों को संकट में पड़ा जाना। इस प्रकार छहों राजाओं द्वारा घेर लिए जाने पर राजा कुंभ, अस्थिर, अबल, शक्तिहीन हो गया। अब शत्रुओं का सामना किया जाना संभव नहीं है, यह सोचकर वह अत्यंत तीव्रता यावत् वेगपूर्वक मिथिला नगरी की ओर लौट चला। मिथिला में प्रविष्ट होकर उसने नगर के द्वार बंद कर दिए और उसमें शत्रुओं के प्रवेश को रोकने हेतु सन्नद्ध हो गया। मिथिला पर संकट के बादल (१३२) तए णं ते जियसत्तु पामोक्खा छप्पि रायाणो जेणेव मिहिला तेणेव उवागच्छंति २ ता मिहिलं रायहाणिं णिस्संचारं णिरुच्चारं सव्वओ समंता ओलंभित्ताणं चिटुंति। तए णं से कुंभए राया मिहिलं रायहाणिं रुद्धं जाणित्ता अब्भंतरियाए उवट्ठाणसालाए सीहासणवरगए तेसिं जियसत्तु पामोक्खाणं छण्हं राईणं छिद्दाणि य विवराणि य मम्माणि य अलभमाणे बहूहिं आएहि य उवाएहि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004196
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size9 MB
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