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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
... मिथिला पर चढ़ाई की तैयारी
(१२७) .. तए णं ते जियसत्तु पामोक्खा छप्पि रायाणो तेसिं दूयाणं अंतिए एयमढे सोच्चा णिसम्म आसुरुत्ता ४ अण्णमण्णस्स दूयसंपेसणं करेंति २ त्ता एवं वयासीएवं खलु देवाणुप्पिया! अम्हं छण्हं राईणं दूया जमगसमगं चेव जाव णिच्छूढा। तं सेयं खलु देवाणुप्पिया! (अम्हं) कुंभगस्स जत्तं गेण्हित्तए-त्तिक? अण्णमण्णस्स एयमढे पडिसुणेति २ त्ता ण्हाया सण्णद्धा हत्थिखंधवरगया सकोरंट मल्लदामा जाव सेयवर चामराहिं० महयाहयगयरहपवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धिं संपरिवुडा सव्विड्डीए जाव रवेणं सएहिं २ णगरेहिंतो जाव णिग्गच्छंति २ त्ता एगयओ मिलायंति (रत्ता) जेणेव मिहिला तेणेव पहारेत्थ गमणाए।
शब्दार्थ - जत्तं - युद्ध की यात्रा-चढ़ाई।
भावार्थ - तत्पश्चात् जितशत्रु आदि छहों राजा अपने-अपने दूतों से यह सुनकर अत्यंत क्रुद्ध हुए और एक दूसरे के यहाँ दूत भेज कर यह संदेश करवाया-देवानुप्रिंयो! हम छहों राजाओं के दूत एक ही साथ यावत् मिथिला पहुँचे। पर वे, अपमान पूर्वक निकाल दिए गए। इसलिए अब यही अच्छा होगा, हम राजा कुंभ पर चढ़ाई करें। एक दूसरे ने यह बात स्वीकार की। वे स्नानादि सभी दैनंदिन कृत्य संपन्न कर युद्ध के लिए तैयार हुए। हाथियों पर सवार हुए। कोरंट पुष्प मालाओं से युक्त छत्र उन पर तने थे, श्वेत चामर उन पर डुलाए जा रहे थे। वे हाथी, रथ और पदाति योद्धाओं से युक्त चतुरंगिणी सेनाओं से घिरे हुए थे, जिससे उनकी ऋद्धि वैभव प्रकट होता था। युद्ध के नगाड़ों की ध्वनि के साथ अपनी अपनी नगरी से निकले। आगे चलते हुए यथा स्थान परस्पर मिले और मिथिला की ओर रवाना हुए।
कुंभ द्वारा भी सैन्य-सज्जा
(१२८) तए णं कुंभए राया इमीसे कहाए लढे समाणे बलवाउयं सदावेइ २ त्ता
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