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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
आहिंडसि बहूण य राईसरगिहाई अणुप्पविससि, तं अत्थियाइं ते कस्सवि रण्णो वा जाव एरिसए ओरोहे विट्ठपुव्वे जारिसए णं इमे मह उवरोहे ?
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भावार्थ - अनंतर राजा जितशत्रु, जो अपने अन्तःपुर की रानियों के सौंदर्य आदि से विस्मित था, चोक्षा परिव्राज़िका से बोला- देवानुप्रिय ! आप बहुत से ग्राम, नगर आदि में घूमती रही हैं यावत् बहुत से राजाओं ऐश्वर्यशालीजनों के घरों में प्रविष्ट होती रही हैं। क्या किसी राजा का यावत् ऐश्वर्यशाली पुरुष का ऐसा अन्तःपुर कहीं देखा है ?
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तणं सा चोक्खा परिव्वाइया जियसत्तुं (रायं) एवं वयासी ईसिं अवहसियं करेइ, करेत्ता एवं वयासी - ( एवं च) सरिसए णं तुमं देवाणुप्पिया! तस्स अगडद्ददुरस्स | केस णं देवाणुप्पिए! से अगडद्ददुरे ? जियसत्तु ! से जहाणामए अगडदुरे सिया, से णं तत्थ जाएं तत्थेव वुड्ढे अण्णं अगडं वा तलागं वा दहं वासरं वा सागरं वा अपासमाणे चेव मण्णइ - अयं चेव अगडे वा जाव सागरे वा । तए णं तं कूवं अण्णे सामुद्दए द्ददुरे हव्वमागए । तए णं से कूवद्ददुरे तं सामुद्दद्ददुरं एवं वयासी-से केस णं तुमं देवाणुप्पिया! कत्तो वा इह हव्वमागए ? तए णं से सामुद्दएद्ददुरे तं कूवद्ददुरं एवं वयासी एवं खलु देवाणुप्पिया ! अहं सामुद्दएद्ददुरे । तए णं से कूवद्ददुरे तं सामुद्दयंद्ददुरं एवं वयासी केमहालए णं देवाप्पिया ! से समुद्दे ! तए णं से सामुद्दए ददुरे तं कूवददुरे एवं वयासीमहालए णं देवाणुप्पिया! समुद्दे । तए णं से कूवदुरे पाएणं लीहं कड्ढे २ ता एवं वयासी - एमहालए णं देवाणुप्पिया! से समुद्दे ? णो इणट्ठे समट्ठे, महालए णं से समुद्दे । तए णं से कूवदुरे पुरत्थिमिल्लाओ तीराओ उप्फिडित्ताणं (पच्चत्थिमिल्लं तीरं गच्छइ २ त्ता एवं वयासी- एमहालए णं देवाणुप्पिया! से समुद्दे ? णो इणट्ठे मट्ठे ( तहेव ) ।
शब्दार्थ - ईसिं - ईषद्-कुछ, अवहसियं करेड़ - हंसती है, अगड- दद्दूरस्स - कूप मण्डूक का, लीहं - लकीर, कड्ढेड़ - निकालता है।
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