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________________ प्रथम अध्ययन - आर्य जम्बू १३ आर्य जंबू . तेणं कालेणं तेणं समएणं अज्जसुहम्मस्स अणगारस्स जेठे अंतेवासी अज्ज जंबू णामं अणगारे कासवगोत्तेणं सत्तुस्सेहे जाव अज्जसुहम्मस्स थेरस्स अदूरसामंते उड्ढं जाणू अहोसिरे झाणकोट्ठोवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। शब्दार्थ - जेठे - ज्येष्ठ-बड़े, अणगारस्स - अनगार-मुनि, कासवगोत्तेणं - काश्यप गोत्रीय, सत्तुस्सेहे - सात हाथ ऊँची देह से युक्त, अज्जसुहम्मस्स थेरस्स - स्थविर आर्य सुधर्मा के, अदूर सामंते - न अधिक दूर न अधिक निकट-समुचित स्थान पर, उड्ढं जाणू - घुटने ऊँचे किये हुए, अहोसिरे - मस्तक नीचा किये हुए, झाणकोट्ठोवगए - ध्यान कोष्ठोपगतध्यान मुद्रा में स्थित। भावार्थ - आर्य सुधर्मा के बड़े शिष्य आर्य जम्बू, जिनके शरीर की ऊँचाई सात हाथ थी, जो अन्यान्य दैहिक विशेषताओं से तथा तप आदि संयमोपवर्धक उत्तम गुणों से युक्त थे, आर्य सुधर्मा की सन्निधि में आये, संयम एवं तप से आत्मानुभावित होते हुए समुचित स्थान पर उनके समक्ष घुटनों के बल झुके हुए, मस्तक नीचा किये, ध्यान-मुद्रा में अवस्थित हुए। विवेचन - आर्य जंबू भगवान् महावीर स्वामी की परम्परा में अंतिम केवली थे। उनका जन्म राजगृह में अत्यंत वैभवशाली श्रेष्ठी ऋषभदत्त के घर हुआ। उनका लालन-पालन अपार वैभव एवं सुख समृद्धि के बीच हुआ। जंबू के वैराग्यमय धार्मिक संस्कार प्रारंभ से ही बहुत उच्च थे। माता-पिता और पारिवारिकजनों के आग्रह के कारण सोलह वर्ष की अवस्था में उनका आठ सुंदर श्रेष्ठी कन्याओं के साथ विवाह हुआ। उन्हें निन्यानवे करोड़ की संपत्ति प्रीतिदान में प्राप्त हुई। .सुहागरात में वे अपनी आठों नवविवाहिता पत्नियों को संसार की नश्वरता बतलाते हुए वैराग्य भाव की ओर प्रेरित करने हेतु वार्तालाप कर रहे थे। संयोग ऐसा बना, उसी समय प्रभव नामक प्रसिद्ध चोर अपने पाँच सौ साथियों के साथ चोरी करने के लिए जंबू के महल में प्रविष्ट हुआ। वह छिप कर जंबू और उनकी पत्नियों का वार्तालाप सुनने लगा। जंबू द्वारा दिये गये Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004196
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size9 MB
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