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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
तब राजा कुंभ ने अपने दूत को बुलाया - यावत् पूर्ववत् उसने दूत को सब बातें कही। यह सुनकर राजा की लक्ष्य पूर्ति हेतु दूत रवाना हुआ ।
राजा अदीनशत्रु (१३)
तेणं कालेणं तेणं समएणं कुरुजणवए होत्था । हत्थिणाउरे णयरे । अदीणसत्तू णामं या होत्था जाव विहरइ ।
भावार्थ - उस काल, उस समय कुरु नामक जनपद था । उसमें हस्तिनापुर नामक नगर था। अदीनशत्रु वहाँ का राजा था यावत् वह सुख पूर्वक राज्य करता था ।
(६४)
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तत्थ णं मिहिलाए ( तस्स णं) कुंभगस्स पुत्ते पभावईए अत्तए मल्लीए अणु (मग्ग) जायए मल्लदिण्णए णामं कुमारे जाव जुवराया यावि होत्था । तए णं मल्लदिणे कुमारे अण्णया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी - गच्छह णं तुभे मम पमदवणंसि एगं महं चित्तसमं करेह अणेग जाव पच्चप्पिणंति ।
भावार्थ - मिथिला नगरी में राजा कुंभ का पुत्र, प्रभावती का आत्मज, मल्ली का अनुज युवराज मल्लदिन्न था। उसने एक बार अपने प्रासाद के सेवकों को बुलाया और कहा कि जाओ, तुम मेरे प्रमदवन (विशिष्ट उद्यान) में एक विशाल चित्रशाला भवन का निर्माण कराओ, जो सैकड़ों स्तंभों पर सन्निविष्ट - अवस्थित हो। वैसा कर मुझे मेरे आज्ञानुरूप कार्य होने की सूचना करो ।
(६५)
तए णं से मल्लदिण्णे चित्तगरसेणिं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी - तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! चित्तसभं हावभावविलास बिब्बोयकलिएहिं रूवेहिं चित्तेह जाव पच्चप्पिणह। तए णं सा चित्तगरसेणी तहत्ति पडिसुणेइ २ त्ता जेणेव सयाई गिहाई तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तूलियाओ वण्णए य गेण्हइ २ त्ता जेणेव चित्तसभा तेणेव ( उवागच्छइ, उवागच्छित्ता) अणुप्पविसइ २ त्ता भूमिभागे विरयइ २ ता भूमिं सज्जेइ २ ता चित्तसभं हाव भाव जाव चित्तेउं पयत्ता यावि होत्था ।
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