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मल्ली नामक आठवां अध्ययन
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कुंडलजुयलं गेण्हइ २ त्ता जेणेव सुवण्णगारभिसियाओ तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता सुवण्णगारभिसियासु णिवेसेइ २ त्ता बहूहिं आएहि य जाव परिणामेमाणा इच्छंति तस्स दिव्वस्स कुंडलजुयलस्स संधिं घडित्तए णो चेव णं संचाइ संघडित्तए ।
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काशी नरेश शंख
शब्दार्थ सुवणगार भिसियाओ स्वर्णकारों की कार्यशाला, आएहि - साधनों द्वारा, परिणामेमाणा - पूर्व रूप में परिणत करने हेतु प्रयत्न करते हुए ।
भावार्थ स्वर्णकारों ने यह स्वीकार किया। उन्होंने दिव्य कुण्डलों को ग्रहण किया और अपनी कार्यशाला में आए। वहाँ उसे पूर्व रूप में लाने हेतु अनेक प्रकार के उपाय किए किन्तु कुण्डल युगल की संधि को घटित नहीं कर सके, उसे जोड़ नहीं पाए ।
(दर)
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३८५
तए णं सा सुवण्णगारसेणी जेणेव कुंभए तेणेव उवागच्छइ, वागच्छित्ता करयल जाव वद्धावेत्ता एवं वयासी एवं खलु सामी ! अज्ज तुब्भे अम्हे सहावेह जाव संधि संघाडेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह । तए णं अम्हे तं दिव्वं कुंडलजुयलं गेण्हामो जेणेव सुवण्णगारभिसियाओ जाव णो संचाएमो संघाडित्तए । तए णं अम्हे सामी ! एयस्स दिव्वस्स कुंडलस्स अण्णं सरिसयं कुंडल जुयलं घडेमो । भावार्थ - तदनंतर वे स्वर्णकार राजा कुंभ के पास आए और हाथ जोड़ कर मस्तक, झुकाकर यों बोलें स्वामी! आपने हमें बुलाया, बुलाकर कुण्डल के जोड़ लगाने की और वापस लौटाने की आज्ञा दी। हम इन दिव्य कुण्डल को लेकर कार्यशाला में आए किन्तु प्रयत्न करने पर भी जोड़ नहीं लगा सके। इसलिए स्वामी ! क्या इन दिव्य कुण्डल के सदृश अन्य कुण्डल बना दें।
(८)
तए णं से कुंभए राया तीसे सुवण्णगार सेणीए अंतिए एयमट्ठे सोच्चा णिसम्म आसुरुत्ते ४ तिवलियं भिउडिं णिडाले साहद्दु एवं वयासी - ( से के) केस णं तुब्भे कलायाणं भवह? जे णं तुब्भे इमस्स (दिव्वस्स) कुंडलजुयलस्स णो संचाएह संधिं संघाडित्तए? ते सुवण्णगारे णिव्विसए आणवेइ ।
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