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मल्ली नामक आठवां अध्ययन - रानी प्रभावती का दोहद
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भावार्थ - देव महाबल जो मति, श्रुत, अवधि रूप तीन ज्ञानों से युक्त था, जब ग्रह उच्च स्थानों में स्थित थे। दिशाएं सौम्य, अंधकार रहित और विशुद्ध थीं। शकुन विजयशील थे। दक्षिण की ओर से अनुकूल वायु भूमि पर चल रही थी। पृथ्वी धान्य से संपन्न थी, जनपद-प्रमुदित और उल्लसित थे। वैसे शुभ समय में, आधी रात के समय जब अश्विनी नक्षत्र का चंद्रमा से योग था, हेमन्त ऋतु के चौथे महीने, आठवें पक्ष फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष में, चतुर्थी तिथि के पश्चाद्वर्ती भाग में-अर्द्धरात्रि के समय अपनी बत्तीस सागरोपम स्थिति के अनंतर जयंत विमान से च्यव कर देव विषयक आहार, शरीर एवं भव का त्याग कर यहीं इसी जंबूद्वीप में, भारत वर्ष में, मिथिला नामक राजधानी में, कुंभक राजा की प्रभावती नामक रानी की कोख में वह गर्भ रूप में उत्पन्न हुआ। .
(२५) तं रयणिं च णं चोद्दस महासुमिणा वण्णओ। भत्तारकहणं सुमिणपाढगपुच्छा जाव विहरइ।
भावार्थ - उस रात में-अर्द्धरात्रि के समय रानी प्रभावती ने, जब वह न गहरी नींद में थी और न जाग रही थी, चौदह महास्वप्न देखे। अपने पति से उसने स्वप्नों के बारे में कहा। राजा ने स्वप्न पाठकों को बुलाकर स्वप्नों का फल पूछा। उन्होंने बतलाया। रानी बड़ी हर्षित हुई। । रानी प्रभावती का दोहद
. (२६) - तए णं तीसे पभावईए देवीए तिण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं इमेयारूवे डोहले पाउन्भूए-धण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ जाओ णं जलथलयभासुरप्पभूएणं दसद्धवण्णेणं मल्लेणं अत्थुयपच्चत्थुयंसि सयणिजंसि सपिणसण्णाओ संणिवण्णाओ य विहरंति एगं च महं सिरिदामगंडं पाडलमल्लिय चंपगअसोगपुण्णागणागमरुयगदमणगअणोजकोजय पउरं परम सुहफासदरिसणिजं महया गंधद्धणिं मुयंतं अग्घायमाणीओ डोहलं विणेति।
शब्दार्थ - जलथलयभासुरप्पभूएणं - जल और स्थल में उत्पन्न दीप्तिमय, अत्थुय
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