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________________ मल्ली नामक आठवां अध्ययन - तपश्चरण में छल ३४३ १२. शीलव्रतों-उत्तरगुण-मूल गुणों का अतिचार रहित पालन १३. प्रतिक्षण धर्मध्यान में लीनता १४. तप-द्वादश तपों का आराधन १५. त्याग-अभयदान-सत्पात्र दान १६. वैयावृत्य-आचार्य आदि की सेवा-सुश्रूषा १७. समाधि १८. अपूर्व-अभिनत्र ज्ञान का अभ्यास, १६. श्रुत-भक्ति २०. प्रवचन-प्रभावना। (१४) तए णं ते महब्बलपामोक्खा सत्त अणगारा मासियं भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरंति जाव एगराइयं भिक्खूपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरंति। भावार्थ - तदनंतर वे महाबल आदि सातों साधु एक मासिकी प्रथम भिक्षु प्रतिमा यावत् क्रमशः बारहवीं एक रात्रि की भिक्षुप्रतिमा स्वीकार कर साधनाशील रहे। (१५) तए णं ते महब्बल पामोक्खा सत्त अणगारा खुड्डागं सीहणिक्किलियं तवोकम्मं उवसंपजित्ताणं विहरंति तंजहा-चउत्थं करेति करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेंति २ त्ता छटुं करेंति २त्ता चउत्थं करेंति २ त्ता अट्ठमं करेंति २त्ता छटुं करेंति २ त्ता दसमं करेंति २ ता अट्टमं करेंति २ त्ता दुवालसमं करेंति २ त्ता दसमं करेंति २ त्ता चोद्दसमं करेंति २त्ता दुवालसमं करेंति २ ता सोलसमं करेंति २. त्ता चोदसमं करेंति २ ता अट्ठारसमं करेंति २ त्ता सोलसमं करेंति २ त्ता वीसइमं करेंति २ त्ता अट्ठारसमं करेंति २ त्ता वीसइमं करेंति २ त्ता सोलसमं करेंति २ ता अट्ठारसमं करेंति २ त्ता चोद्दसमं करेंति २त्ता सोलसमं करेंति २ त्ता दुवालसमं करेंति २ त्ता चोहसमं करेंति २ त्ता दसमं करेंति २ त्ता दुवालसमं करेंति २ त्ता अट्ठमं करेंति २ त्ता दसमं करेंति २ त्ता छटुं करेंति २ त्ता अटुं करेंति २ त्ता चउत्थं करेंति २ त्ता छटुं करेंति २ त्ता चउत्थं करेंति सव्वत्थ सव्वकामगुणिएणं पारेंति। शब्दार्थ - खुड्डागं - क्षुल्लक-लघु, सीहणिक्किलियं - सिंह निष्क्रीड़ित तप विशेष, सव्वकामगुणियं - सर्वकाम गुणित-विगय आदि सभी पदार्थ सहित। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004196
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size9 MB
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