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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
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जह सा उज्झियणामा, उज्झियसाली जहत्थमभिहाणा। पेसणगारित्तेणं, असंखदुक्खक्खणी जाया॥२॥ तह भव्वो जो कोई, संघ समक्खं गुरुविदिण्णाई। पडिवजिउं समुज्झइ महव्वयाई महामोहा॥ ३॥ सो इह चेव भवम्मि, जणाण धिक्कारभायणं होइ। पर लोए उ दुहत्तो णाणाजोणीसु संचरइ॥४॥ जह वा सा भोगवई, जहत्थणामोवभुत्तसालिकणा। पेसणविसेस कारित्तणेण पत्ता दुहं चेव॥ ५॥ तह जो महव्वयाई, उवभुंजइ जीवियत्ति पालिंतो। आहाराइसु सत्तो, चत्तो सिवसाहणिच्छाए॥६॥. सो इत्थ जहिच्छाए, पावइ आहारमाइ लिंगित्ति। विउसाण णाइपुजो, परलोयम्मि दुही चेव॥७॥ जह वा रक्खियबहुया, रक्खियसाली कणा जहत्थक्खा। परिजणमण्णा जाया, भोगसुहाइँ च संपत्ता॥८॥ तह जो जीवो सम्मं, पडिवजिजा महव्वए पंच। पालेइ णिरइयारे, पमायलेसंपि वजेंतो॥६॥ सो अप्पहिएक्करई, इह लोयंमिवि विऊहिं पणयपओ। एगंतसुही जायइ, परम्मि मोक्खंपि पावेइ॥ १०॥ जह रोहिणी उ सुण्हा, रोवियसाली जहत्थमभिहाणा। वड्डित्ता सालिकणे, पत्ता सव्वस्स सामित्तं॥११॥ तह जो भव्वो पाविय, वयाई पालेइ अप्पणा सम्म। अण्णेसिवि भव्वाणं देइ, अणेगेसिं हियहेउं॥१२॥ .. सो इह संघपहाणो, जुगप्पहाणेत्ति लहइ संसदं। अप्प परेसिं कल्लाण, कारओ गोयमपहुव्व॥१३॥
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