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________________ तुम्बा नामक षष्ठ अध्ययन - भगवान् का उत्तर ३१३ एवं खलु जंबू! समणेणं जाव संपत्तेणं छट्ठस्स णायज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते त्तिबेमि। भावार्थ - हे जंबू! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने इस प्रकार छठे ज्ञाताअध्ययन का यह अर्थ कहा है, जिसे मैंने व्याख्यात किया है। उवणय गाहाओ - जह मिउलेवालित्तं, गरुयं तुंबं अहो वयइ एवं। आसवकयकम्मगुरु, जीवा वच्चंति अहरगइं॥ १॥ - तं चेव तविमुक्कं, जलोवरिं ठाइ जायलहुभावं। __जह तह कम्मविमुक्का, लोयग्गपइट्ठिया होंति॥२॥ . ॥छटुं अज्झयणं समत्तं॥ शब्दार्थ - मिउलेवालित्तं - मिट्टी के लेप से लिप्त, वयइ - चला जाता है, आसवकयकम्मगुरु - आस्रवजनित कर्मों के कारण भारी बने हुए, वच्चंति - जाते हैं, अहरगई - अधोगति-नरक गति को, तब्विमुक्कं - मृत्तिकादि के लेप से विमुक्त-छूटा हुआ, जायलहुभावंजातलघुभाव-हल्का हो जाने पर। ... भावार्थ - मिट्टी के लेप से भारी बना हुआ तूंबा, जैसे - नीचे-पानी के पैंदे पर चला जाता है, उसी प्रकार आम्रवों के कारण कर्मों से भारी होकर जीव, अधोगति-नरकगति प्राप्त करता है। वही तूंबा जब मिट्टी आदि के लेपों से मुक्त हो जाता है तो हलका होकर पानी के ऊपर स्थित हो जाता है। उसी प्रकार जीव कर्मों से विमुक्त होकर, लोकाग्र भाग में-सिद्ध स्थान में स्थित हो जाते हैं। ॥ १-२॥ . ॥ छठा अध्ययन समाप्त॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004196
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size9 MB
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