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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
जाव वंदइ णमंसइ २ त्ता पज्जुवासइ । तए णं से मंडुए राया सेलगस्स अणगारस्स सरीरगं सुक्कं भुक्खं जाव सव्वाबाहं सरोगं पासइ, पासित्ता एवं वयासी- अहं णं भंते! तुब्भं अहापवित्तेहिं तेगिच्छिएहिं अहापवत्तेणं ओसहभेसज्जेणं भत्तपाणं तिगिच्छं आउंटावेमि । तुब्भ णं भंते! मम जाणसालासु समोसरह फासुअं एसणिज्जं पीढफलगसेज्जासंथारंग ओगिण्हित्ताणं विहरइ ।
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शब्दार्थ - तेगिच्छिएहिं - चिकित्सकों द्वारा, ओसहभेसज्जेणं जड़ी बूटियाँ तथा दवाओं द्वारा, तिगिच्छं - चिकित्सा, आउंटावेमि - कराऊँ, जाणसालासु - यानशाला में, समोसरह - पधारें ।
भावार्थ शैलक किसी समय पूर्वानुपूर्व - यथाक्रम विहार करते हु शैलक पुर में, सुभूमिभाग नामक उद्यान में पधारे। दर्शन, वंदन धर्म-श्रवण हेतु परिषद् एकत्रित हुई। राजा मण्डुक भी उपस्थित हुआ। शैलक अनंगार को वंदन, नमन किया, उनकी पर्युपासना की- उनके सान्निध्य में बैठा ।
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जब राजा मण्डुक ने अनगार शैलक के शरीर को सूखा हुआ रोगों द्वारा दुर्बल एवं निस्तेज यावत् सर्वबाधायुक्त देखा तब वह बोला- 'भगवन्! मैं आपकी यथा प्रवृत्त - साधु मर्यादा एवं कल्प के अनुकूल, चिकित्सकों द्वारा कल्पनीय औषध भैषज पथ्य खान-पान से आपकी चिकित्सा कराना चाहता हूँ।
भगवन्! आप मेरी यानशाला में पधारें । प्रासुक एषणीय पीठ, फलक, शय्या - संस्तारक यथाविधि ग्रहण कर विराजें ।
(६१)
तणं से सेलए अणगारे मंडुयस्स रण्णो एयमट्ठ तहत्ति पडिसुणेइ । तए णं से मंडुए सेलगं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता जामेव दिसिं पाउब्भूए तामेव दिसिं पडिगए। तए णं से सेलए कल्लं जाव जलंते सभंडमत्तोवगरणमायाए पंथगपामोक्खेहिं पंचहिं अणगार सएहिं सद्धिं सेलगपुरमणुप्पविसइ २ त्ता जेणेव मंडुयस्स जाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता फासुयं पीढ जाव विहर । अनगार शैलक ने राजा मंडुक का यह अनुरोध स्वीकार किया। राजा मंडुक
भावार्थ
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