________________
शैलक नामक पांचवाँ अध्ययन - शुक एवं थावच्चापुत्र का शास्त्रार्थ
२८९
जो सर्षपक धान्यार्थ बोधक सरिसवय हैं वे दो प्रकार के हैं-शस्त्र-परिणत तथा अशस्त्रपरिणत। उनमें जो अशस्त्र परिणत हैं, वे श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए अभक्ष्य हैं। उनमें जो शस्त्र परिणत हैं वे दो प्रकार के हैं- प्रासुक - अचित्त और अप्रासुक - सचित्त।
- शुक! अप्रासुक खाने योग्य नहीं है। उनमें जो प्रासुक हैं वे दो प्रकार के बतलाये गये हैं जैसे याचित एवं अयाचित। उनमें जो अयाचित हैं, वे अभक्ष्य हैं। जो याचित हैं वे दो प्रकार के हैं - एषणीय और अनेषणीय। उनमें जो अनेषणीय हैं, वे अभक्ष्य हैं।
- जो एषणीय हैं, वे दो प्रकार के हैं - लब्ध - भिक्षाचर्या द्वारा प्राप्त, अलब्ध-भिक्षा के रूप में अप्राप्त।
जो अलब्ध हैं, वे अभक्ष्य हैं। जो लब्ध हैं, वे निर्ग्रन्थों के लिए भक्ष्य हैं। शुक! इस द्विविध अभिप्राय के अनुसार 'सरिसवय' भक्ष्य भी हैं और अभक्ष्य भी हैं।
(४८) एवं कुलत्थावि भाणियव्वा णवरं इमं णाणत्तं - इत्थिकुलत्था य धण्णकुलत्था य। इत्थिकुलत्था तिविहा पण्णत्ता तंजहा-कुलवहुया य कुलमाउया इ य कुलधूया इय। धण्णकुलत्था तहेव।
शब्दार्थ - कुलत्था - कुलत्थ नामक विशेष धान्य तथा कुलस्था-कुल में स्थित स्त्री, णाणत्तं - विशेषता जानना चाहिए, इत्थि - स्त्री, कुलवहुया - कुल वधू, कुलमाउया - कुलमाता, कुलधूया - कुल धूता-कुल पुत्री।
भावार्थ - कुलत्था के संबंध में भी ऐसा ही कथन करना चाहिए। वहाँ विशेष बात यह ज्ञातव्य है कि कुलत्था शब्द कुल स्थित स्त्री तथा कुलत्थ नामक धान्य-इन दो अर्थों में प्रयुक्त है। कुलस्थ स्त्री तीन प्रकार की बतलायी गई है। जैसे कुल वधू, कुल माता तथा कुल पुत्री। जिस प्रकार श्रमण निर्ग्रन्थों की दृष्टि में मित्रादि सूचक 'सरिसवय' अभक्ष्य हैं, इसी प्रकार स्त्री सूचक 'कुलत्थ' अभक्ष्य हैं। धान्य सूचक कुलत्थों की भक्ष्यता के संबंध में भी वे ही तथ्य ग्राह्य हैं, जो सर्षपसूचक ‘सरिसवय' के संबंध में प्रतिपादित हुए हैं।
(४६) एवं मासा वि णवरं इमं णाणत्तं - मासा तिविहा पण्णत्ता तंजहा -
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org