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शैलक नामक पांचवाँ अध्ययन
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शुक का पुनः आगमन
सुए परिव्वायए सुदंसणं अणब्भुट्ठियं पासित्ता एवं वयासी - तुमं णं सुदंसणा ! अण्णया ममं एज्जमाणं पासित्ता अब्भुट्ठेसि जाव वंदसि, इयाणिं सुदंसणा तुमं ममं एज्जमाणं पासित्ता जाव णो वंदसि, तं कस्स णं तुमे सुदंसणा ! इमेयारूवे विणयमूले धम्मे पडिवण्णे ?
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भावार्थ - सुदर्शन शुक परिव्राजक को आते हुए देखकर न तो खड़ा ही हुआ और न उसके सामने गया, न उसके प्रति आदर सम्मान दिखाया एवं न उसे वंदन, नमन ही किया, मौन रहा। शुक परिव्राजक ने जब सुदर्शन को खड़ा न होते हुए, सामने न आते हुए देखा तो उससे बोला - सुदर्शन! पहले जब कभी मुझे तुम आता हुआ देखते थे, यावत् वंदन - नमन करते थे । सुदर्शन! इस बार मुझे आते हुए देखकर तुमने यावत् न वंदन किया, न नमन किया ।
सुदर्शन! क्या तुमने (शौचमूलक धर्म का परित्याग कर ) विनयमूलक धर्म अपना लिया है?
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तए णं से सुदंसणे सुएणं परिव्वायएणं एवं वुत्ते समाणे आसणाओ अब्भुट्ठेइ अब्भुट्ठेत्ता करयल जाव सुयं परिव्वायगं एवं वयासी - एवं खलु देवाणुप्पिया! अरहओ अरिट्ठणेमिस्स अंतेवासी थावच्चापुत्ते णामं अणगारे जावं इहमागए इह चेव णीलासोए उज्जाणे विहरड़, तस्स णं अंतिए विणयमूले धम्मे पडिवण्णे । भावार्थ शुक परिव्राजक द्वारा यों कहे जाने पर सुदर्शन आसन से उठा और जोड़कर, मस्तक झुकाकर उससे यों बोला - देवानुप्रिय ! भगवान् अरिष्टनेमि के अन्तेवासी थावच्चापुत्र नामक अनंगार, यावत् यहाँ पधारे, नीलाशोक नामक उद्यान में रुके, मैंने उनसे विनयमूलक धर्म स्वीकार किया है।
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तए णं से सुए परिव्वायए सुदंसणं एवं वयासी तं गच्छामो णं सुदंसणा ! तव धम्मायरियस्स थावच्चापुत्तस्स अंतियं पाउब्भवामो इमाई च णं एयारूवाइं अट्ठाई हेऊई पसिणाइं कारणाइं वागरणाइं पुच्छामो । तं जइ णं मे से इमाई अट्ठाई जाव वागरे तए णं अहं वंदामि णमंसामि । अह मे से इमाई अट्ठाई जाव वागरे त णं अहं एएहिं चेव अट्ठेहिं हेऊहिं णिप्पट्टपसिणवागरणं करिस्सामि ।
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