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________________ शैलक नामक पांचवाँ अध्ययन - शुक का पुनः आगमन सुए परिव्वायए सुदंसणं अणब्भुट्ठियं पासित्ता एवं वयासी - तुमं णं सुदंसणा ! अण्णया ममं एज्जमाणं पासित्ता अब्भुट्ठेसि जाव वंदसि, इयाणिं सुदंसणा तुमं ममं एज्जमाणं पासित्ता जाव णो वंदसि, तं कस्स णं तुमे सुदंसणा ! इमेयारूवे विणयमूले धम्मे पडिवण्णे ? -- Jain Education International भावार्थ - सुदर्शन शुक परिव्राजक को आते हुए देखकर न तो खड़ा ही हुआ और न उसके सामने गया, न उसके प्रति आदर सम्मान दिखाया एवं न उसे वंदन, नमन ही किया, मौन रहा। शुक परिव्राजक ने जब सुदर्शन को खड़ा न होते हुए, सामने न आते हुए देखा तो उससे बोला - सुदर्शन! पहले जब कभी मुझे तुम आता हुआ देखते थे, यावत् वंदन - नमन करते थे । सुदर्शन! इस बार मुझे आते हुए देखकर तुमने यावत् न वंदन किया, न नमन किया । सुदर्शन! क्या तुमने (शौचमूलक धर्म का परित्याग कर ) विनयमूलक धर्म अपना लिया है? (४२) तए णं से सुदंसणे सुएणं परिव्वायएणं एवं वुत्ते समाणे आसणाओ अब्भुट्ठेइ अब्भुट्ठेत्ता करयल जाव सुयं परिव्वायगं एवं वयासी - एवं खलु देवाणुप्पिया! अरहओ अरिट्ठणेमिस्स अंतेवासी थावच्चापुत्ते णामं अणगारे जावं इहमागए इह चेव णीलासोए उज्जाणे विहरड़, तस्स णं अंतिए विणयमूले धम्मे पडिवण्णे । भावार्थ शुक परिव्राजक द्वारा यों कहे जाने पर सुदर्शन आसन से उठा और जोड़कर, मस्तक झुकाकर उससे यों बोला - देवानुप्रिय ! भगवान् अरिष्टनेमि के अन्तेवासी थावच्चापुत्र नामक अनंगार, यावत् यहाँ पधारे, नीलाशोक नामक उद्यान में रुके, मैंने उनसे विनयमूलक धर्म स्वीकार किया है। २८३ (४३) तए णं से सुए परिव्वायए सुदंसणं एवं वयासी तं गच्छामो णं सुदंसणा ! तव धम्मायरियस्स थावच्चापुत्तस्स अंतियं पाउब्भवामो इमाई च णं एयारूवाइं अट्ठाई हेऊई पसिणाइं कारणाइं वागरणाइं पुच्छामो । तं जइ णं मे से इमाई अट्ठाई जाव वागरे तए णं अहं वंदामि णमंसामि । अह मे से इमाई अट्ठाई जाव वागरे त णं अहं एएहिं चेव अट्ठेहिं हेऊहिं णिप्पट्टपसिणवागरणं करिस्सामि । For Personal & Private Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.004196
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size9 MB
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