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________________ ॥ णमो सिद्धाणं॥ णायाधम्मकहाओ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र (मूल पाठ, कठिन शब्दार्थ, भावार्थ एवं विवेचन सहित) पठमं अज्झयणं: उक्वित्तणाए उत्क्षिप्तज्ञात नामक प्रथम अध्ययन (१) तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा णामं णयरी होत्था, वण्णओ॥ शब्दार्थ - तेणं कालेणं - उस काल में, तेणं समएणं - उस समय में, णयरी - नगरी, होत्था - थी। भावार्थ - उस काल-वर्तमान अवसर्पिणी के चौथे आरे में, उस समय-जब आर्य सुधर्मा स्वामी विद्यमान थे, चम्पा नामक नगरी थी। विवेचन - यहाँ पर काल तथा समय-इन दो शब्दों का प्रयोग हुआ है। साधारणतः ये दोनों शब्द समान. अर्थ के सूचक हैं। जैन पारिभाषिक दृष्टि से इन दोनों में अन्तर है। काल वर्तना-लक्षण सामान्य समय का बोधक है तथा समय काल के सबसे छोटे भाग का-सूक्ष्मतम अंश का सूचक है। यहाँ इन दोनों का प्रयोग इस भेद युक्त अर्थ के साथ नहीं हुआ है। काल शब्द यहाँ उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी मूलक काल-चक्र के साथ सम्बद्ध है। समय शब्द साधारणतया युग-विशेष का बोधक है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004196
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size9 MB
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