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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
___ भावार्थ - उस मृत गंग तीर द्रह नाम झील से न अधिक दूर, न अधिक निकट एक बड़ा मालुकाकच्छ था। उसका वर्णन द्वितीय अध्ययन के अनुसार यहाँ अभिधेय है। उस मालुकाकच्छ में दो पापी गीदड़ रहते थे। वे पापाचारी, क्रोधी, भयंकर तथा मांस प्राप्त करने में सर्वथा तत्पर . तथा दुःसाहसी थे। उनके आगे के पंजे खून से रंगे रहते थे। वे नितांत मांस-लोलुपी थे। रात्रि एवं संध्याकाल में वे मांस की खोज में घूमते थे, दिन में, छिपे रहते थे।
दो कछुओं का झील से बहिरागमन
तए णं ताओ मयंगतीरबहाओ अण्णया कयाइं सूरियंसि चिरत्थमियंसि लुलियाए संज्ञाए पविरल-माणुसंसि णिसंत-पडिणिसंतंसि समाणंसि दुवे कुम्मगा आहारत्थी आहारं गवेसमाणा सणियं २ उत्तरंति तस्सेव मयंगतीरद्दहस्स परिपेरंतेणं सव्वओ समंता परिघोलेमाणा २ वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति।
शब्दार्थ - सूरियंसि चिरत्थमियंसि - सूर्यास्त के बहुत समय बाद, लुलियाए - व्यतीत होने पर, पविरलमाणुसंसि - जब विरले ही मनुष्य दिखाई देते हो-सुनसान समय में, णिसंतपडिसंतंसि - सोने का समय होने पर, सब ओर खामोशी छा जाने पर, कुम्मगा - कूर्मक-कछुए, परिपेरंतेणं - आस-पास, परिघोलेमाणा - घूमते हुए, वित्तिं - उदरपूर्ति, कप्पेमाणा - चिंता करते हुए।
भावार्थ - किसी समय सूर्यास्त के बहुत बाद, संध्या के बीत जाने पर, जब विरले ही लोगों का आवागमन था, शयनकाल होने से सर्वत्र खामोशी छाई हुई थी, उस मृतगंगतीर नामक झील से दो आहारार्थी कछुए, आहार की खोज में धीरे-धीरे बाहर निकले। उसी झील के आस-पास वे अपने उदरपूर्ति की चिंता में घूमने लगे।
शृगालों की कछुओं पर दृष्टि
तयाणंतरं च णं ते पावसियालगा आहारत्थी जाव आहारं गवेसमाणा मालुयाकच्छयाओ पडिणिक्खमंति २ ता जेणेव मयंगतीरद्दहे तेणेव उवागच्छंति
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