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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
पलाया महया २ सद्देणं जाव अम्हे मालुयाकच्छयं च पेच्छमाणी २ चिट्ठ तं भवियव्वमेत्थ कारणेणं त्तिकट्टु मालुयाकच्छयं अंतो अणुप्पविसंति २ त्ता तत्थ णं दो पुट्ठे परियागए जाव पासित्ता अण्णमण्णं सद्दावेतिं २ त्ता एवं वयासी । उव्वग्गा त्रस्त, उद्विग्न, पाया पलायिता - अपने स्थान से
तत्था
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शब्दार्थ
भागी हुई ।
भावार्थ तब उन सार्थवाह पुत्रों ने परस्पर वार्तालाप किया और कहा यह जंगली मयूरी हमें आता हुआ देखकर भयभीत, त्रस्त एवं उद्विग्न होती हुई भाग गई। अब जोर-जोर से आवाज कर रही है और हमें तथा मालुकाकच्छ को देख रही है। इसका कोई न कोई कारण होना चाहिए। ऐसा विचार कर वे मालुकाकच्छ में प्रविष्ट हुए। वहां दो परिपुष्ट यावत् वृद्धि प्राप्त अंडों को देखा, आपस में बात कर यो कहा ।
अण्डों का अधिग्रहण
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(१६)
सेयं खलु देवाणुप्पिया! अम्हं इमे वणमऊरीअंडए साणं जाइमंताणं कुक्कुडियाणं अंडएसु य पक्खिवावित्तए । तए णं ताओ जाइमंताओ कुक्कुडियाओ ताए अंडए सए य अंडए सएणं पक्खवाएणं सारक्खमाणीओ संगोवेमाणीओ विहरिस्संति। तए णं अम्हं एत्थं दो कीलावणगा मऊरपोयगा भविस्संति-त्तिकट्टु, अण्णमण्णस्स एयमठ्ठे पडिसुर्णेति २ त्ता सए सए दासचेडए सद्दावेंति २ ता एवं वयासी - गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! इमे अंडए गहाय सगाणं जाइमंताणं कुक्कुडीणं अंडए पक्खिवह जाव ते वि पक्खिवेंति ।
शब्दार्थ - साणं - स्वकीयं, जाइमंताणं विशिष्ट जातियुक्त, कुक्कुडियाणं - मुर्गियों के, पक्खिवावित्तए - रखवादें, सए अपने, कीलावणगा - क्रीड़ाकारक-क्रीड़ा करने वाले, मऊरपोयगा - मयूर के बच्चे ।
भावार्थ यह अच्छा होगा कि हम वनमयूरी के अण्डों को अपने यहाँ उच्च जातीय मुर्गियों के अण्डों में डलवा दें। वे मुर्गियाँ अपने पंखों के आच्छादन द्वारा इन अण्डों का और
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