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संघाट नामक दूसरा अध्ययन - भद्राःकोप-शांति.
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जावि य से तत्थ बाहिरिया परिसा भवइ तंजहा-दासाइ वा पेस्साइ वा भियगाइ वा भाइल्लगाइ वा से वि य णं धण्णं सत्थवाहं एजमाणं पासइ, पासित्ता पायवडियाए खेमकुसलं पुच्छंति।
... शब्दार्थ - पभिई - प्रभृति-आदि, आढ़ति - आदर करते हैं, परिजाणंति - स्वागत सूचक शब्दों से परिज्ञापित करते हैं, अब्भुढेंति - सम्मान पूर्वक सम्मुख खड़े होते हैं, भियगाइमृतक आदि जिनका बाल्यावस्था से पोषण किया गया हो, ऐसे सेवक, भाइल्लागाइ - व्यापारिक हिस्सेदार, खेम - क्षेम-अनर्थ का उत्पन्न न होना, कुसलं - कुशल-अनर्थ का प्रतिघात-मिटना।
भावार्थ - धन्य सार्थवाह. को कारागृह से मुक्त हुआ देखकर राजगृह नगर में बहुत से आत्मीयजन, श्रेष्ठि-वृंद तथा सार्थवाह आदि ने उसका आदर, सत्कार और सम्मान किया, सम्मुख खड़े होकर शारीरिक कुशल समाचार पूछा। धन्य सार्थवाह अपने आवास स्थान में पहुँचा। भवन के बाहरी सभा कक्ष में उसके दासों, प्रेष्यों, भृतकों तथा व्यापारिक सहभागियों ने उसके चरणों में गिर कर कुशलक्षेम की पृच्छा की।
जावि य से तत्थ अन्भंतरिया परिसा भवइ तंजहा-मायाइ वा पियाइ वा भायाइ वा भइणीय वा सावि य णं धण्णं सत्थवाहं एजमाणं पासइ, पासित्ता आसणाओ अब्भुढेइ २ त्ता कंठाकंठियं अवयासिय बाहप्पमोक्खणं करेड़।
शब्दार्थ - कंठाकंठियं अवयासिय - गले से गला लगाकर मिलते हुए, बाहप्पमोक्खणंवाष्प प्रमोक्षण-हर्ष के आँसू गिरना।
भावार्थ - सार्थवाह के भवन के आन्तरिक सभा कक्ष में उसके माता-पिता, भाई-बहिन आदि ने जब सार्थवाह को आता हुआ देखा तो अपने स्थान से खड़े हुए। गले से गला लगाकर मिले। उनकी आँखों से हर्ष के आँसू बहने लगे।
भद्राःकोप-शांति .
तए णं से धण्णे सत्थवाहे जेणेव भद्दा भारिया तेणेव उवागच्छइ। तए णं
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