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________________ संघाट नामक दूसरा अध्ययन - (80) तए णं सा भद्दा कल्लं जाव जलंते विपुलं असणं ४ जाव परिवेसेइ । तए णं से धणे सत्थवाहे विजयस्स तक्करस्स ताओ विपुलाओ असणाओ ४ संविभागं करे । तए णं से धण्णे सत्थवाहे पंथयं दासचेडं विसज्जेइ । Jain Education International भावार्थ दूसरे दिन सवेरे, सूरज निकलने पर भद्रा ने खान-पान की विपुल सामग्री भेजी । धन्य सार्थवाह ने विजय चोर को उसमें से हिस्सा दिया। उसने दास पुत्र पन्थक को वापस रवाना किया । भद्रा की नाराजगी (४१) तए णं से पंथए भोयणपिडयं गहाय चारगाओ पडिणिक्खमइ २ ता रायगिहं णयरं मज्झमज्झेणं जेणेव सए गिहे जेणेव भद्दा भारिया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भद्दं सत्थवाहिणिं एवं वयासी एवं खलु देवाणुप्पिए! धण्णे सत्थवाहे तव पुत्तघायगस्स जाव पच्चामित्तस्स ताओ विपुलाओ असणाओ ४ संविभागं करेइ । तए णं सा भद्दा सत्थवाही पंथयस्स दास चेडयस्स अंतिए एयमहं सोच्चा आसुरुत्ता रुट्ठा जाव मिसिमिसेमाणा धण्णस्स सत्थवाहस्स पओसमावज्जइ । शब्दार्थ - आसुरुत्ता तत्काल क्रोध से लाल, रुट्ठा रुष्ट - रोष युक्त, मिसिमिसेमाणाप्रद्वेष- अत्यधिक द्वेष, क्रोध वश अन्तर्दाह से जलती हुई, पओसं आवज्जइ आपद्यते प्राप्त होना । - - - भद्रा की नाराजगी - २२१ - भावार्थ दासपुत्र पन्थक भोजन की पिटारी को लेकर कारागृह से रवाना हुआ। वह राजगृह नगर के बीचोंबीच होता हुआ, सार्थवाह की पत्नी भद्रा के पास आया। उसने भद्रा से - 'देवानुप्रिये ! धन्यसार्थवाह तुम्हारे पुत्र के हत्यारे विजय चोर को खान-पान की विपुल सामग्री में से हिस्सा देता है । ' कहा For Personal & Private Use Only - भद्रा सार्थवाही दासपुत्र पन्थक से यह सुनकर तत्काल क्रोध से लाल तथा अत्यंत रोष युक्त हो गई। क्रोधवश अन्तर्दाह से जलने लगी। पति के प्रति उसके मन में भारी द्वेष उत्पन्न हुआ। www.jainelibrary.org
SR No.004196
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size9 MB
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